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भ्रष्टाचार पर कविता

भ्रष्टाचार पर कविता

इस देश के लिए हम मर मिटेंगे,
देश के सारे भ्रष्टाचारी अब पिटेंगे।

फर्जीवाड़ा करके बना दिया श्मशान,
चली गई उसमें कितने लोगों की जान।

जिधर देखूं उधर सब भ्रष्टाचारी नजर आते,
यह कभी नहीं सुधरेंगे देश के गद्दार नजर आते हैं।

इनका पेट नहीं भरता लूट कर सरकारी खजाने को ,
कह दो इनको गरीबों का हक खाने को।

भरभरा कर वह छज्जा आज टूट गया,
कितनों के घर आज गम का पहाड़ टूट गया।

भ्रष्टाचार करना उनके जीवन का मूल मंत्र है,
भ्रष्टाचारियों के आगे झुका सारा प्रजातंत्र है।

मौत की कीमत लगाने में देरी नहीं होती,
भ्रष्टाचार मिटा देते तो आज यह मौत नहीं होती।

जितना भी इनके खिलाफ बोलूं वह कम है,
सब सो रहे हैं उनके खिलाफ कोई नहीं बोलता बस यह गम है।

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दास बैरागी

यह कविता हमें भेजी है दास बैरागी जी ने इंदौर ( म. प्र.) से। दास बैरागी जी 12वीं के छात्र हैं और कवि समाज सेवा आदि का काम भी करते हैं।

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