देशभक्ति कविता : हिंद की ओर
सहज-सहज, प्रभु को सिमर-सिमर।
पग चले, प्रगति स्वर्ण, हिंद की ओर।
धूमिल न हो राष्ट्र, छवि, विश्व पटल पर।
चले सर्वत्र क्षण, स्वच्छता का उपक्रम।
क्षण-क्षण, सदन-कुंज में हो प्रेम सदा।
धीमें से चले, पग हिंद, उत्थान की ओर।
प्रभु में विलीन हो, सर्व जन-कुटुंब।
साझा हो, दुख-सुख सर्व-जन के।
वेदना न हो अन्य को, सर्वत्र औषधि बने हम ।
सहज-सहज चले, स्वच्छ निर्मल हिंद की ओर ।।
किन्नर की न हो भत्र्सना, मिले सर्व अधिकार उन्हें।
अनूठी कृति हैै तात: की, कर सेवा जन की हिंद बढ़े।
धीरे से कदम चले, समद्ध हिंद भूतल की ओर ।।
करें सम्मान, हम दरिद्र व दिव्यांग का।
ईष्र्या बिन हो, सर्व सरल स्वभाव सब का।
सर्वत्र हो, राष्ट्र धरा पर विकास गंगा की रेखा।
चले पग विकास हिंद पटल की ओर।।
करें उपचार, बंधुत्व भाव से सभी का हम।
सर्वस्व प्रण करें हम, कर दान अंग व्यथित को।
अंतिम क्षण भी हो समर्पित मानव धर्म को।
निष्पक्ष हो सेवा जन की, आरोह लक्ष्य हो वतन का।
मंद-मंद पथिक चले, प्रगति हिंद की ओर।।
तात: हो न्यौछावर मानव धर्म को सर्वस्व हमारा।
धरा पर न हो कभी अधर्म, अनीति का उजारा।
शनै: शनै: पग चले, स्वर्ग धरा की ओर।।
भ्रष्ट न हो गण कोई, निष्ठा भाव से हो कर्म सभी।
सहज-सिमर, प्रभु को, चले अश्वहिंद स्वर्ण की ओर ।।
यह कविता हमें भेजी है अंकेश धीमान जी ने बड़ौत रोड़ बुढ़ाना जिला मु.नगर, उत्तर प्रदेश से।
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