आदरणीया अंशु विनोद गुप्ता जी की ( Geetika Nahi Samjho Mujhe Abla ) गीतिका – नहीं समझो मुझे अबला :-
गीतिका – नहीं समझो मुझे अबला
नहीं समझो मुझे अबला, भले कोमल सी’ काया है।
समर्पित कर दिया जीवन, सदा ही घर बसाया है।
बड़े अरमान थे माँ के, उन्हें पूरा किया मैंने,
प्रगति पथ पर चलो तनकर, पिता ने यह सिखाया है।
मुसीबत में मदद करना, हितैषीपन रहे उत्तम।
बुजुर्गों से यही अब तक, समझ इतना ही आया है।
भगाएं देश से दुश्मन, रहें सब जन सहजता से,
सिखाएं प्रेम की भाषा, यही मन को सुहाया है।
लिखीं हैं ज्ञान की बातें, हमारे इन पुराणों में
युगों से पीढ़ियाँ पढ़तीं, मगर किसने निभाया है।
किशन की बाँसुरी राधा, अधर से है लगाती जब,
जपे राधा,कहे राधा, जगत भर को नचाया है।
कुठाराघात खेती पर, कभी सूखा कभी बारिश
कृषक की सोच गहराती, उबर ऋण से न पाया है।
वतन के नौनिहालों का हुआ क्या हाल है देखो
भुलाकर संस्कृति अपनी विदेशी राग भाया है।
अँधेरे से निकल रविकर, गगन पर रंग बिखराये
विहग दल चहचहाते हैं, कमल भी मुस्कुराया है।
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अंशु विनोद गुप्ता जी एक गृहणी हैं। बचपन से इन्हें लिखने का शौक है।नृत्य, संगीत चित्रकला और लेखन सहित इन्हें अनेक कलाओं में अभिरुचि है। ये हिंदी में परास्नातक हैं। ये एक जानी-मानी वरिष्ठ कवियित्री और शायरा भी हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें “गीत पल्लवी “,दूसरी पुस्तक “गीतपल्लवी द्वितीय भाग एक” प्रमुख हैं। जिनमें इनकी लगभग 50 रचनाएँ हैं।
इतना ही नहीं ये निःस्वार्थ भावना से साहित्य की सेवा में लगी हुयी हैं। जिसके तहत ये निःशुल्क साहित्य का ज्ञान सबको बाँट रही हैं। इन्हें भारतीय साहित्य ही नहीं अपितु जापानी साहित्य का भी भरपूर ज्ञान है। जापानी विधायें हाइकु, ताँका, चोका और सेदोका में ये पारंगत हैं।
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