ग़ज़ल – सनम दीवानी हूँ तेरी | Sanam Diwani Hun Teri

आदरणीया अंशु विनोद गुप्ता जी की ( Ghazal Sanam Diwani Hun Teri ) ग़ज़ल – सनम दीवानी हूँ तेरी :-

ग़ज़ल – सनम दीवानी हूँ तेरी

ग़ज़ल – सनम दीवानी हूँ तेरी

सनम दीवानी हूँ तेरी, तुझे गुलफ़ाम लिक्खा है।
हथेली पर हिना से यूँ, तेरा ही नाम लिक्खा है।।

रुकी कब चाह उल्फ़त की, ज़माने की अदावत से
मिलन होगा जनम भर का, यही अंजाम लिक्खा है।

घने बादल विरह मन को, बहुत व्याकुल किए जाते
इन्हीं मेघों के दामन पर, तुम्हें पैग़ाम लिक्खा है।

न जाने किन अँधेरों में, धुआँ बन लाड़ले खोते
गली की ईंट पर खूँ से, जो क़त्लेआम लिक्खा है।

जहाँ में एक ही हस्ती, सहन-शीला बनी माता
विधाता ने उसी का क्यों, जगत संग्राम लिक्खा है।

मगन मन आज नाचूँगी, किशन की बाँसुरी सुनकर
वही राधा व मीरा हूँ, तुम्हें घन श्याम लिक्खा है।

बँधे हैं जीव माया से, नहीं निकले फ़रेबों से
लगाए पार जो नौका, उसी पर राम लिक्खा है।

पढ़िए :- ग़ज़ल ” सलामत रहे आशियाना तुम्हारा “


अंशु विनोद गुप्ता जी अंशु विनोद गुप्ता जी एक गृहणी हैं। बचपन से इन्हें लिखने का शौक है।नृत्य, संगीत चित्रकला और लेखन सहित इन्हें अनेक कलाओं में अभिरुचि है। ये हिंदी में परास्नातक हैं। ये एक जानी-मानी वरिष्ठ कवियित्री और शायरा भी हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें “गीत पल्लवी “,दूसरी पुस्तक “गीतपल्लवी द्वितीय भाग एक” प्रमुख हैं। जिनमें इनकी लगभग 50 रचनाएँ हैं।

इतना ही नहीं ये निःस्वार्थ भावना से साहित्य की सेवा में लगी हुयी हैं। जिसके तहत ये निःशुल्क साहित्य का ज्ञान सबको बाँट रही हैं। इन्हें भारतीय साहित्य ही नहीं अपितु जापानी साहित्य का भी भरपूर ज्ञान है। जापानी विधायें हाइकु, ताँका, चोका और सेदोका में ये पारंगत हैं।

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