ग़ज़ल अच्छा लगता है

ग़ज़ल अच्छा लगता है

ख़त का आना,सबसे छुपाना, अच्छा लगता है।
सोच के रखना नया ठिकाना, अच्छा लगता है।

पहली टक्कर,ज़ोर का झगड़ा नहीं भूलता कुछ
बार-बार क़िस्सा दोहराना, अच्छा लगता है।

प्यार का बोसा,टपका आँसू, सुर्ख़ गुलाबी गुल
ख़त से इत्र की ख़ुश्बू आना, अच्छा लगता है।

चाँदनी रातें,तारे खिलते,पुरवाई डोले
छत पर चाँद को गले लगाना, अच्छा लगता है।

समय भागता,तुम नहीं आते, घबराता है मन
दर्द की बातें,अश्क बहाना, अच्छा लगता है।

बन फ़रियादी घटा से कहती, डरपाती डायन
डर से मुद्रिका गोल घुमाना, अच्छा लगता है।

इक्का,बेगम, गुलाम ईंट का, यह बावन पत्ते
शर्त हारकर,तुम्हें जिताना, अच्छा लगता है।

कोयल मोर सावनी बरखा, सुलगाते तन-मन
नौकरी को सौतन बतलाना, अच्छा लगता है।

मुआ टुनटुना झँझट लगता पर लालच ‘लव यू’ का
मोबाइल रीचार्ज कराना, अच्छा लगता है।

पढ़िए :- ग़ज़ल ” न तुम ही मिलोगे ” | Ghazal Naa Tum Hi Miloge


अंशु विनोद गुप्ता जी अंशु विनोद गुप्ता जी एक गृहणी हैं। बचपन से इन्हें लिखने का शौक है।नृत्य, संगीत चित्रकला और लेखन सहित इन्हें अनेक कलाओं में अभिरुचि है। ये हिंदी में परास्नातक हैं। ये एक जानी-मानी वरिष्ठ कवियित्री और शायरा भी हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें “गीत पल्लवी “,दूसरी पुस्तक “गीतपल्लवी द्वितीय भाग एक” प्रमुख हैं। जिनमें इनकी लगभग 50 रचनाएँ हैं।

इतना ही नहीं ये निःस्वार्थ भावना से साहित्य की सेवा में लगी हुयी हैं। जिसके तहत ये निःशुल्क साहित्य का ज्ञान सबको बाँट रही हैं। इन्हें भारतीय साहित्य ही नहीं अपितु जापानी साहित्य का भी भरपूर ज्ञान है। जापानी विधायें हाइकु, ताँका, चोका और सेदोका में ये पारंगत हैं।

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