ग़ज़ल न तुम ही मिलोगे
न तुम ही मिलोगे न हम ही मिलेंगे।
फ़क़त सोज़-ए-हिज्रां में जलते रहेंगे।
निभा दोनों लेंगे यूँ अपनी वफ़ा को
अगर जी न पाए यक़ीनन मरेंगे।
ज़माने के डर से बहुत खींची रेखा
कभी ना कभी फ़ासले तो मिटेंगे।
वो युग था पुराना ख़तों का चलन था
अहद हमने माना कि ख़त ही लिखेंगे।
ये क़ासिद भी निकला दिवाना बेचारा
जो पहुँचे न ख़त उसके घर से मिलेंगे।
ख़तों का पुलिंदा है लालो-गुहर सा
ख़ज़ाना सँभाले उमर भर रखेंगे।
लखन उर्मिला सी तपस्या हमारी
मिलन की घड़ी तक जुदाई सहेंगे।
हज़ारों हों ग़म चाहे दिन-रात आँसू
मुसीबत से इक साथ हरदम लड़ेंगे।
भले ज़ुल्मतें हों ये दीपक बुझे ना
कि नेकी के रस्ते सदा हम चलेंगे।
इरादों की ऊँची हवेली की सीढ़ी
क़दम से क़दम हम मिलाकर चेढ़ेंगे।
कहानी मुहब्बत की सच्ची सभी की
लिखो ‘अंशु’ दिल से तभी तो पढ़ेंगे।
पढ़िए :- ग़ज़ल “भूलने में ज़माने लगे हैं“
अंशु विनोद गुप्ता जी एक गृहणी हैं। बचपन से इन्हें लिखने का शौक है।नृत्य, संगीत चित्रकला और लेखन सहित इन्हें अनेक कलाओं में अभिरुचि है। ये हिंदी में परास्नातक हैं। ये एक जानी-मानी वरिष्ठ कवियित्री और शायरा भी हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें “गीत पल्लवी “,दूसरी पुस्तक “गीतपल्लवी द्वितीय भाग एक” प्रमुख हैं। जिनमें इनकी लगभग 50 रचनाएँ हैं।
इतना ही नहीं ये निःस्वार्थ भावना से साहित्य की सेवा में लगी हुयी हैं। जिसके तहत ये निःशुल्क साहित्य का ज्ञान सबको बाँट रही हैं। इन्हें भारतीय साहित्य ही नहीं अपितु जापानी साहित्य का भी भरपूर ज्ञान है। जापानी विधायें हाइकु, ताँका, चोका और सेदोका में ये पारंगत हैं।
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Nice.