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हिंदी कविता गांव पर

हिंदी कविता गांव पर

हर गांव हर शहर से अच्छा
सुविधा कम सही जीवन तो अच्छा।

शुद्ध व्यंजनों का भोग करते
न कभी कठिनाई से डरते।

भाईचारे से हम सब रहते
बाल्यकाल से यही सिखाते।

चहूँ दिशा प्रकृति का श्रृंगार निराला
परिश्रम से जीवन का होता उजाला।

पशुपालन से सबका नाता
आरोग्यता को तभी पाता।

पगडण्डियों का है जाल विछा
चलना सबने हर हाल सीखा।

उत्सवों में होते एक साथ
दुखों में बंटाते सबका हाथ।

सोलह संस्कार को निभाते देखा
घर आंगन हर द्वार गाँव को देखा।

अनूठा है तो बस संस्कार युक्त परिवार देखा
स्वस्थ कर्मठ व्यक्ति को जीते सौ साल देखा।

पढ़िए :- गांव पर हिंदी कविता “यूँ ही गाँव, गाँव नहीं कहलाता”


रचनाकार का परिचय

आचार्य रोशन शर्मायह कविता हमें भेजी है आचार्य रोशन शर्मा जी ने महामाया जी मन्दिर, सुंदरनगर, जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश से।

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