हमारे समाज और देश में आज-कल होने वाली घटनाओं को कौन नहीं जानता? ये सब देख कर आम आदमी चाहे खामोश रहे लेकिन एक कवि कभी चुप नहीं बैठता। वो अपनी आवाज उठाता है अपनी कलम से। ऐसे ही एक ककवि की भावना है यह आज के सच पर ( Kavita Dard Diya Takdeer Ne ) ” कविता दर्द दिया तकदीर ने ” :-

कविता दर्द दिया तकदीर ने

कविता दर्द दिया तकदीर ने

नयनों में बसे मेरे गंग है
जमुना मानों वो नीर है,
दर्द दिया तकदीर ने
फीकी- फीकी सी तस्वीर है।

कितनी है ग़र्द सियासत में
कैसा बेढंगी ये शोर है,
दाँव जब उल्टा पड़ता है
साहुकार भी लगता चोर है,
ना जीते ना हारे हम
हक मांगा था मारे हम,
हादसों के गुणा-भाग में
पुर्साहाल बस फ़कीर है।

दर्द दिया तकदीर ने
फीकी- फीकी सी तस्वीर है।

रोते कलपते से इंसान थे
बेगै़रती सबके फरमान थे,
ग़र्दिशों का असर खा़क कर
ख़ता हमारी जो नादान थे,
मीलों तक ना कोई साया था
मिलने ना कोई आया था,
अश्कों का बाजार सजा था
तोहमत की जंजीर है।

दर्द दिया तकदीर ने
फीकी- फीकी सी तस्वीर है।

चाँद खिला है फ़लक पे देखो
आँधीयाँ ग़मों की संभाली है,
खुशियों सें झोली भर दी
खा़बों की वादियाँ खाली है,
ला-ईलाज बेबसी हो गई
ठहरा-ठहरा के रात सो गई,
हर जश्न बना है अब मातम
समझे ना कोई ये पीर है।

दर्द दिया तकदीर ने
फीकी- फीकी सी तस्वीर है।

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