हिंदी कविता कहाँ गयी तेरी रखवाली

हिंदी कविता कहाँ गयी तेरी रखवाली

हे!संविधान उत्तर दो मेरा,कौन करे तेरी रखवाली?
क्यूँ मूक बधिर बन बैठा है,लिए हाथ कंगन बाली?
कहाँ गया सिंह सा गर्जन,भीषण रौब न्यायधारी?
क्या बदल गया चरित्र तेरा,लगा अधरों पर लाली?

बिके चंद पैसे खातिर,बजाकर किन्नर सी ताली।
हे!संविधान के रखवाले,कहाँ गयी तेरी रखवाली?

कुछ जाते शहरों में अकेले,कुछ रुपये चंद कमाने।
जिम्मेदारी का बोझ लिए,गरीबी को अपनी भगाने।
गलतफहमियों के चलते कुछ,उन निर्दोषों को मारे,
भीड़ होती कुछ ऐसी जो,न मानवता को पहचाने।

बीच राह लोगों ने मिलकर, ब्रह्म हत्या कर डाली।
हे! संविधान के रखवाले,कहाँ गयी तेरी रखवाली?

ऋषि-मुनी की तपोभूमि है,देवों की पावन नगरी।
आज धरा पर निर्दोषों के, रक्त से भरी है गगरी?
शर्मसार करती हैं देश को,ये घटनाएं लिंचिंग की,
कर मासूमों की हत्या निर्मम,देती हैं चोटें गहरी।

धर्म-जाति का भेद बता,कुछ देश में करते दलाली
हे! संविधान के रखवाले,कहाँ गयी तेरी रखवाली?

राम-कृष्ण की कर्मभूमि,जो भव सागर पार उबारे।
ये देव जिन्होंने इस धरा पर,मानव के थे पैर पखारे।
बंजर पड़ी भारत भू-धरा है,अकाल पड़ा हृदयों में,
आखिर निर्दोषों के हत्यारों को, दे रहा कौन सहारे?

शांति के भारत में कभी,सब लोगों में थी खुशहाली।
हे! संविधान के रखवाले,कहाँ गयी है तेरी रखवाली।

हे!कलियुग तेरी माया प्रतिदिन,आघात दे रही गहरे।
क्या अब साथ दिखेंगे सबके,बस हथियारों के पहरे?
जन-जन फिर दुश्मन हो रहा,आपस में एक दूजे के,
क्या अब लाशों के ढेर बिछेंगे,जहाँ भी जाएंगी नजरें?

क्या लाशें गिनेगी न्यायप्रणाली,या छाएगी बदहाली?
हे! संविधान के रखवाले, कहाँ गयी तेरी रखवाली।

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हरीश चमोली

मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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