हिंदी कविता मुसाफिर हूँ मैं यारों
न जाने आज मैं
किस ओर चल रहा हूँ।
अनजानी राहों में
गिरने से सँभल रहा हूँ।
कदम डगमगा रहे राह में,
फिर भी सीना तान खड़ा हूँ।
मुसाफिर हूँ मैं यारों
लक्ष्य ढूंढने चल पड़ा हूँ।
जैसी भी बाधाएं आएं
मैं उनके मुताबिक ढल रहा हूँ।
हार जीत कुछ भी मिले
यही सोच घर से निकल रहा हूँ।
चक्रव्यूह भेदने जग का
मैं अभिमन्यु सा बढा हूँ।
मुसाफिर हूँ मैं यारों
लक्ष्य ढूंढने चल पड़ा हूँ।
पर्वतों सा अडिग
साहस से भरा हूँ।
सागर की लहर सा
कभी न ठहरा हूँ।
मिलने को साहिल से
मैं चट्टानों पर चढ़ा हूँ।
मुसाफिर हूँ मैं यारों
लक्ष्य ढूंढने चल पड़ा हूँ।
छाले पड़े हैं पैरों में
फिर भी न रुकता हूँ
मन पर पाऊं बिजय
अब खुद से मैं लड़ता हूँ।
मंजिल पाने को बेताब
संघर्ष की राह बढा हूँ।
मुसाफिर हूँ मैं यारों
लक्ष्य ढूंढने चल पड़ा हूँ।
न जाने क्या सोच
मैं आज निकल चुका हूँ।
बीते समय को पछाड़
आगे बढ़ चुका हूँ।
लक्ष्य मिले पहचान मिले
यही सोच खुद से लड़ा हूँ।
मुसाफिर हूँ मैं यारों
लक्ष्य ढूंढने चल पड़ा हूँ।
पढ़िए :- तलाश पर कविता | मैं आज में ढूंढ रहा हूँ
मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
“ हिंदी कविता मुसाफिर हूँ मैं यारों ” ( Hindi Kavita Musafir Hun Main Yaaron ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
- हमारा फेसबुक पेज लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
धन्यवाद।
Leave a Reply