आप पढ़ रहे हैं हिंदी कविता पुकार संविधान की :-

हिंदी कविता पुकार संविधान की

हिंदी कविता पुकार संविधान की

जन्मा मैं सन 1949 में।
1950 में आँख खुला।।
न्याय में आस पनपता देख।
कन्धा मेरा भरा रहा।।

पुकारते थें जो संविधान कहकर।
आज उसका अर्थ पलट गया।।
नियमों की पोथी भर रह गई।
अब कठपुतली सा जीवन मेरा।।

वक्त बीत गया वो,
जब रूह अन्याय का
मेरे फ़ैसले से थरथराता था।।
दोषी का दोष।
मेरा हर एक पन्ना बताता था।।

अब न्याय मेरे दरवाज़े पर लहू अपना बहाता है।
कौन हूँ मैं मेरा अस्तित्व क्या है।
ये सवाल निर्दोषों का।
मेरे पहचान पर प्रशन चिह्न लगाता है।।

बाबा अंबेडकर की देन।
मैं तो दस्तावेज हूँ सच पथ का।।
मेरे कथनों को झूठ की स्याही में डूबो।
गुनहगार नही बनाओ अब मुझे किसी बेबस का।।

संविधान की पवित्रता पर।
हमें आँच नही आने देना है।।
इससे खिलवाड़ करने वालों को।
इसकी ताक़त का वजूद दिखाना है।।

पढ़िए :- कविता संविधान पर


रचनाकार का परिचय

अनु

यह कविता हमें भेजी है अनु जी ने दिल्ली से।

“ हिंदी कविता पुकार संविधान की ” ( Hindi Kavita Pukar Samvidhan Ki ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

Leave a Reply