अपना परिचय देते हुए शब्द पर हिंदी कविता :-

शब्द पर हिंदी कविता

शब्द पर हिंदी कविता

हांँ मैं भ्रष्ट हूँ
ऊंची नीची अनुभव की
डगर पर चलती हूँ

कभी गिरती हूँ
कभी फिसलती हूँ
मन के भावों को टटोलती हूँ

अनायास ही कुछ
विचार कुछ तर्क
कुछ बहस
मुझे स्पर्श कर लेते हैं

किसी की चाहत से
मैं बच नहीं पाती
और सबसे स्पर्श होते ही
कलम के जरिए
फिसल जाती हूँ मैं

कागज के सपाट धरातल पर
जहां मैं सबकी निगाहों
का शिकार होती हूं
और उतर जाती हूँ
पढ़ने वाले के
मन मस्तिष्क में

क्योंकि मैं शब्द हूँ।

वंदना अग्रवाल निराली

पढ़िए :- शब्द पर कविता | शब्दों का खेल है सारा


रचनाकार का परिचय

वंदना अग्रवाल निरालीनाम – वंदना अग्रवाल निराली
पता – लखनऊ, उत्तर प्रदेश

वंदना जी एक पत्नी, गृहिणी, माँ, बहु और शिक्षिका हैं। इन्हें कविताएँ लिखने और पढ़ने का शौक है।
इनकी कविता रूपायन पत्रिका और दूसरी वेबसाइट पर भी प्रकाशित होती रही है।

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