आप पढ़ रहे हैं हिंदी कविता उर के दीप :-

हिंदी कविता उर के दीप

हिंदी कविता उर के दीप

कांटों को क्या कहना,
हमें तो फूलों से डर लगता है,

काँटे मजबूत बनाते हैं ,
फूल तो पल भर में सूख जाते हैं,

भले ही वो शोभा बढ़ाते हैं,
पर पल भर का ही साथ निभाते हैं !

काँटे यूं ही बदनाम हैं,
असल में चलना वही सिखाते हैं !

कांटो का क्या दोष?
वह तो बस सफलता के मायने समझाते हैं !

कांटो से क्या कहना ,
हमें तो फूलों से डर लगता है,

क्षणभर की खुशियों का क्या?
हमें संघर्ष ही हमारा अपना लगता है !

जो आसानी से मिल जाए
उस परिणाम का क्या अर्थ?

बिना कांटे वाली डालियों के फूल
गुलाब के समक्ष है व्यर्थ!

अगर अब भी रुकावट से लगता है, डर!
तो विमर्श कीजिए गुलाब का संघर्ष !

“पुष्प की अभिलाषा से बेहतर है पुष्प बन जाना ”

आदर्श के पद चिन्हों पर।


रचनाकार का परिचय

अदिति मौर्य यह कविता हमें भेजी है अदिति मौर्य जी ने प्रयागराज, उत्तर प्रदेश से। जो कि वशिष्ठ वात्सल्य पब्लिक स्कूल में कक्षा 12 की छात्रा हैं।

“ हिंदी कविता उर के दीप ” ( Hindi Kavita Ur Ke Deep ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

Leave a Reply