आप पढ़ रहे हैं अंकेश धीमान जी द्वारा रचित ( Hindi Kavita Vipda Veer Hum ) हिंदी कविता – विपदा वीर हम :-
हिंदी कविता – विपदा वीर हम
विपदा वीर हम, विश्व धरा, सन्नाटा चाहूँ ओर ऐसे।
मानवधर्म रक्षक, प्रहरी हिंद प्रत्यक्ष प्रमाण बने जैसे।
प्रभंजन अदृश्य शत्रु, हम तो हिंद को जगाने आये हैं।।
कोई करें, पूज्य भाव हमारा, कोई करे, तिरस्कार हमारा।
ना फिक्र, आबरू अभिमान की, सलामत रहे, हिंद हमारा।
निडर बढे पग, अग्निपथ पर, हम, मानवता, खातिर आये हैं।।
शूर वीर हम, परिस्थितियां, हो कैसी भी, प्रतिकूल बने वहां?
ना दास बने हम, कभी उनके, संस्कारों में, तहजीब कहां।
गर्म जोश है अब, हम वतन, की खातिर, मर-मिटने आये हैं।।
वीर सपूत है, मांभारती, के दानशील पुरुष, बली से हम।
बढ़े पग, संकल्प लक्ष्य पथ पर, अदृश्य शत्रु, विनाश को हम।
सर्वत्र चले पग, मानव सेवा के पथ पर, क्षुदा अंत को, आये हैं।।
नष्ट हुई, अब भूख निद्रा चैन, हमारी, हिंद प्रजा की विपदा में।
किंचित ना घबराना, रंक सखा, सच्चे मित्र हम, सदा संकट में।
बस निकल पड़े कदम, अब हमारे, कर्तव्य निभाने यहां आये हैं।।
अदृश्य शत्रु घातक ऐसा, महापुरुषों ने, वचन ये फरमाया है।
पाप कर्म के मारे वो, हिंद समाज के भक्षक, दुर्जन बन गये हैं।
कानून, सच्चे रक्षक हम, उनसे निर्देशों का पालन कराने आये हैं।।
विपदा राष्ट्र ऐसी, ना सुधरे, ना सुधरेंगे, दृढ़ शपथ, ये खाये वो
धर्म, मुनाफा खोरी लक्ष्य, बना उनका, मानवता के दुश्मन वो।
व्याप्त गंदगी, समाज में ऐसी, हम, स्वच्छता उपक्रम को आये हैं।।
कट्टर पंथी, दुर्जन बने वो, समुदाय ऐसा, शर्म से पानी हो गया जैसा
प्रण, विजय पथ,अदृश्य शत्रु संहार हमारा, मानव धर्म, पूर्ण हो जैसा
प्रति पल करें, गहन अन्वेषण उनका, मंगल कामना, हम यहां आये हैं।।
यह कविता हमें भेजी है अंकेश धीमान जी ने बड़ौत रोड़ बुढ़ाना जिला मु.नगर, उत्तर प्रदेश से।
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