जीवन का सफर कविता – आप पढ़ने जा रहे हैं सदानन्द प्रसाद जी द्वारा रचित ” जीवन का सफर “

जीवन का सफर कविता

जीवन का सफर कविता

कांटे भरा है पूरा रास्ता,
कैसा है जीवन से वास्ता,
जब पास नहीं रहे पैसा,
जीवन का सफर है कैसा!

बारिश में न बूंदें टपकी,
किसी को न आई झपकी,
भुखमरी में जीवन कटा,
जीवन का सफर रहे कैसा !

आज नहीं,वो कल होगा,
वो आशा भरा भविष्य होगा,
जिंदगी में आती निराशा,
जीवन का होता सफर कैसा!

सदा रहे न खुशी या गम,
रहो तू जीवन सफर में नम,
संग हो साधन या पैसा,
किसी का मिले रहम कैसा!

लालच बड़ी,जीवन छोटा,
सोच-सोचकर हो गए साठा,
चीज सब छोड़कर भागे,
शमशान में लोग घुटने टेके,

करना पड़ा सबको ऐसा,
सोचो जीवन सफर है कैसा!

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रचनाकार का परिचय

सदानन्द प्रसाद

यह कविता हमें भेजी है सदानन्द प्रसाद जी ने संग्रामपुर,लखीसराय ( बिहार ) से। इनकी शिक्षा स्नातक,डिप. इन.फार्मेसी है। ये योग प्रशिक्षित हैं व भारतीय खाद्य निगम सेवा से निवृत्त हैं। साथ ही बिहार राज्य उपभोक्ता सहकारी संघ,लि., पटना में निदेशक भी रहे हैं।

प्रारंभ से ही समाज सेवा में इनकी अभिरुचि रही है व समाजवादी विचार धारा रही है। कर्पूरी टाइम्स एवं निरोग संवाद पत्रिका का संपादन कार्य भी इन्होंने किया है। विज्ञान का छात्र होने के बावजूद बचपन से ही हिंदी लेखन-पाठन में अभिरुचि रही है।
सामाजिक ,सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि पर इनकी काव्य रचनायें हैं। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन से जुड़ा हैं और हिंदी काव्य गोष्ठी में भाग लेते हैं।

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