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हिंदी कविता दहलीज

हिंदी कविता दहलीज

माँ मन करता है
तू बांहे फैलाये ,
और मे गले लग जाऊं,

थोड़ा सा,,,,,,,
रो कर मन को कर लूं हल्का ,
क्यों माँ अपनी दहलीज
से विदा किया ।

जो आज मन उदास है
तेरी यादों के भंवर में ,
जब से तेरी दहलीज पार की
मैं खो सी गई हूं,,,,
क्यू मां इतना प्यार दिया ,

जो नहीं जी पाती तेरे बिन,,,,
तेरी दहलीज पर रहती थी ,
दिन भर चहचहाती थी,,,,,
आज मैं मायूस हो गई हूं ।
फिर माँ क्यों संसार के
नियमों में बांधा,,,,,।

क्यू माँ जब भी देखती हूं ।
तेरा चेहरा आंखों में,,,,
पानी भर आता ।

तेरी दहलीज पर
कितने ख्वाब सजाए ,
अच्छे बुरे का ज्ञान कराया ।

फिर क्यों माँ ,
किसी और की दहलीज
पर विदा किया ।।

तुझे यूं टूट कर चाहा
बेपनाह मोहब्बत की
मिसाल देते हैं ।

हर कोई मीनू और मम्मा को ,
एक दूसरे की जान बताते हैं।
माँ मेरे वश में हो जो,,,,,
तो तुझसे पल भर भी ना जाऊं दूर।
तेरे सारे बिखरे सपने कर दूं पूरे,,,,,
तू जो बीमारी में भी ,
हर पल मेरे साथ खड़ी थी।

पर माँ कैसी विडंबना है
समाज की,,,,,,
अपने जिगर के टुकड़े को
पल भर भी ना दूर किया ।

आज उसे यू थली-पूजन,
कराके विदा किया ।
भरकर आंखों में पानी ।
यूं ही नहीं हूँ ,
माँ की लाडली बिटिया
उनके रोम-रोम में बस गई हूं
जैसे मन मंदिर में रामलला है
वैसे माँ की आंखों में “मीनू “…


रचनाकार का परिचय

मीनाक्षी राजपूरोहित " मीनू "

नाम – मीनाक्षी राजपूरोहित ” मीनू ”
पिता – विशन सिंह राजपूरोहित
माता – पुष्पा राजपूरोहित
पता – पोस्ट – बस्सी
ज़िला – नागौर राजस्थान ,पिन, 341512
शिक्षा – स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य , समाजशास्त्र , इतिहास (महर्षि दयानन्द सरस्वती यूनिवर्सिटी अजमेर (राजस्थान)
कार्यक्षेत्र – गृह कार्य एवं विद्यार्थी

मीनाक्षीजी की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं इसके साथ ही उन्हें साहित्य जगत में कई सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं।

आत्मकथ्य – लेखन कुछ नया करने का एक आयाम है। अपने भाव, मन की मनोदशा को उतारना लिखना। क्योंकि साहित्य के बिना संस्कृति उदासीन है । मेरे जीवन का उद्देश्य है कि मेरी रचना पढ़कर किसी के जीवन को अगर दिशा मिली तो मेरा लिखना सफल होगा ।लिखना कोई मनोरंजन नहीं होता यहां लेखक अपने ह्रदय की गहराइयों से रचना को उकेरता है । हम हमारे जीवन को एक दिशा दे सकते हैं। “एक कवि की कल्पना शब्दों में बंधी नहीं होती” हम सृजन को किसी भी रुप में देश -भक्ति ,राष्ट्रीय एकता, प्रेम,मानवता माँ-पिता …
अत!साहित्य का आधार ही जीवन है। साहित्यकार आत्मसंतुष्टि ,
सुखानुभूति ,प्रेरणा ,जागृति संवेदना वह मानवीयता को प्रभावित करना है।लेखन अपने खुद के मनोभावों को व्यक्त करना जनमानस तक अपनी बात पहुंचाना । अपने काव्य द्वारा सामाजिक चेतना को जगाना में चाहती हूँ कि मैं ऐसा कुछ लिखूं कि मेरे लिखने से अगर मैं किसी के विचार बदल पाई तो मैं धन्य समझूंगी । बचपन से लिखने का शौक था। पर कोराना काल मैं फिर से लिखना शुरू किया। वैसे माँ बीमार थी तो माँ पर कुछ ना कुछ लिखना आदत हो गई तो मेरे बड़े जीजा राज कंवर ने मुझे लिखने के लिए जो प्रोत्साहित किया उसके लिए हृदय से आभारी हूँ । आप सभी बड़ो का व परिवार जन का आशीर्वाद बना रहे ऐसी उम्मीद के साथ अपनी लेखनी को आगे बढ़ाने की कोशिश करती हूँ

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