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जवान पर हिंदी कविता

जवान पर हिंदी कविता

मुझे नहीं पता।
ये तेरे वतन का जवान है या।
मेरे वतन की शान है।
देह लहू से लतपथ।
लिबास में बस
शहीदी की पहचान है।।
वर्दी का रंग लाल।
वतन भेद से अनजान है।
मुझे नहीं पता।
ये तेरे वतन का जवान है या।
मेरे वतन की शान है।।

मुख पर संतोष मानो।
विपक्षी को,
बेश्वास होकर
उसकी हार की गवाही दे।।
सिमट कर गौरवंतित
हुआ ये सितारा।
बलिदानी की स्याही में।।
आख़िरी सलामी नौजवान की।
वतन की ओर आज़ादी का पैग़ाम है।।
मुझे नहीं पता।
ये तेरे वतन का जवान है या।
मेरे वतन की शान है।।

कहता कुछ नहीं ना कोई खोट है।
मेरा तेरा क्या इसमें।
वतन पर मिटने वाले तो हर सैनिक।
हर वार से होते बेखौफ़ है।।
चाँद अशोक चक्र से अलग।
बस शांति का निशान है।।
मुझे नहीं पता।
ये तेरे वतन का जवान है या।
मेरे वतन की शान है।।

ख़बर पहुँचेगी, जब घर
बूढ़े माँ बाप की धँसतीं
आँखें सैलाब हो जाएगी।
चीख़ तड़प की।
आँगन की रौनक़ छिनने लगेगी।।
मौजूदगी इनकी
हर कोने में यूँही श्वास लेगी।
क़ुर्बानी,फ़क्र से लिप्त
इतिहास बन जाएगी।
वतन के गोद में सोए इस लाल की।
पवित्र आत्मिक की पहचान है।।
आख़िर सरहद के हर ओर।
रहते तो इंसान है।।
मुझे नहीं पता।
ये तेरे वतन का जवान है या।
मेरे वतन की शान है।।

ग़द्दार आंतक देश में क्यूँ पनपते हैं?
मेरे तेरे वतन में क्यूँ नहीं सब?
दिये सेवैयों के साथ।
एक दूजे को अपनेपन के रंग में रंगते हैं।।
न्यौछावर तो दोनों ओर से होते।
ये इंसान रूपी भगवान है।।
मुझे नहीं पता।
ये तेरे वतन का जवान है या।
मेरे वतन की शान है।।

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रचनाकार का परिचय

अनु

यह कविता हमें भेजी है अनु जी ने करोल बाग (दिल्ली) से।

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