आप पढ़ रहे हैं शहीद सैनिक पर कविता ( Shaheed Sainik Par Kavita ) “जब तक जिंदा था सैनिक” :-

शहीद सैनिक पर कविता

 

शहीद सैनिक पर कविता

जब तक जिंदा था सैनिक,
वह देश की सरहद पर ही रहा।
अपने परिवार को देख सके,
उसे इतनी फुर्सत मिली कहां।
इस देश की सेवा की खातिर,
न संभाल सका अपना वो जहाँ।

हम चैन से सोते रहे मगर,
उसको नसीब थी नींद कहाँ।
राजस्थान से सियाचिन तक,
रक्षक बन कर रहा सदा।

देख के टोली दुश्मन की,
अकेले ही ललकार पड़ा।
आई न जब तक अपनी टोली
खा कर गोली भी रहा अड़ा।
न उड़े प्राण उसके जब तक,
वहाँ एक भी दुश्मन बचा रहा।

कसमें वादे तोड़ दिया सब,
था पत्नी से जो भी किया।
भारत माँ की आन की खातिर,
अपना सब कुछ लुटा दिया।

जब आया तिरंगे में लिपटा,
तब नारेबाजी खूब हुआ।
अमर रहे के जयकारे से,
आसमान तक गूँज उठा।
नेताओं ने करी घोषणा,
विधवा का सम्मान हुआ।

लेकिन कुछ दिन में ही सबने
असली चेहरा दिखा दिया।
कोई गिद्ध बना, कोई बना सियार,
कोई नटवरलाल का रूप लिया।
सब कुछ ठग के लोगों ने,
उसे बद्तर हाल में छोड़ दिया।

क्यों हुआ वो सैनिक न्यौछावर
क्यों देश पे अपनी जान दिया।
क्या यही हस्र सोचा था उसने,
जो हमने उसके साथ किया?

धिक्कार है हम, सब लोगों पर,
जो त्याग को उनके भुला दिया।
क्या जीने का हक है उसे ,
जिसने ऐसा सिला दिया?

जिनकी खातिर परिवार को उसने,
थोड़ा भी ना समय दिया।
जब तक जिंदा था सैनिक,
वह देश की सरहद पर ही रहा।

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विनय कुमार (भूतपूर्व सैनिक )यह कविता हमें भेजी है विनय कुमार (भूतपूर्व सैनिक ) जी ने बैंगलोर से।

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