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हिंदी कविता बिलखता शिशु
यह है एक बिलखते शिशु की कहानी।
हर परिवार में दिखती है यह शैतानी।
सुबह-सुबह रोज पडौस में बच्चा चीखता।
एक दिन घर जाकर लगाया उसका पता।
तैयार कर रही थी उसकी माता।
पर बच्चा जाना ही नही चाहता।
सब चाहते थे स्कूल में दाखिला कराना।
अंग्रेजी मिडियम से उसे पढ़ाना।
बच्चे के उम्र थी अभी तीन साल केवल।
चाहते थे सब सीखने का ऊंचा हो लेवल।
बच्चे का बचपन छीन रहे थे
तमाशबीन होकर देख रहे थे।
बच्चा नही जाऊंगा स्कूल कह रहा था।
खेलने की उम्र में किताबों को ढो रहा था।
होमवर्क व ट्यूशन की मारामारी।
बच्चे पर पड़ रही थी बहुत भारी।
मैंने कहा बच्चे की मत करो जोरी।
इसके बचपन की मत करो चोरी।
बचपन के दोस्तों में मस्ती करने दो।
धूप मिट्टी में चोर सिपाही खेलने दो।
बचपन का आनंद लेने दो।
अभी पढ़ाई की उम्र होने दो।
अभी से मत डालो पढ़ाई का बौझ।
खेल कूद में लेने दो अभी मौज
यह पक्की बात है अच्छा बीतेगा बचपन।
तो जीवन में नहीं लगेगा कभी सूनापन।
मेरे कहने से तुम सब इसको छोड़ दो।
आनंद के सागर में डूबकी लगाने दो।
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