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हिंदी कविता अग्निपरीक्षा
सीताजी ने दी थी जो परीक्षा।
वह थी अग्निपरीक्षा।
पतिव्रता सतवंती नारी की कठिन परीक्षा।
पर क्यों नहीं होती पुरुषों की अग्निपरीक्षा।
जब प्रकृति में नर और नारी
दोनों ही है इंसान।
तो नर क्यों बनता है बेईमान।
नर का विलोम नारी नहीं होता।
नारी सर्वशक्तिमान होती।
पर जब बात अग्निपरीक्षा की आती।
तो नारी पर ही क्यों थोपी जाती।
हर नर के विकास में होता है नारी का हाथ।
दोनों को मिलजुल कर ही देना होगा साथ।
फिर नही देनी पड़ेगी अकेली नारी को अग्नि परीक्षा।
अरे यह नारी नहीं होती।
तो यह संसार ही नहीं रचता।
ना तू इतना इठला पाता।
और न ही तू परीक्षा ले पाता।
नारी की अग्निपरीक्षा से भी, बढ़ा है तेरा ही मान।
इसलिए हंसराज हंस कहता है,
अब तू रख नारी की आन बान शान।
“रचनाकार का परिचय
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