आप पढ़ रहे हैं प्रवीण जी द्वारा रचित कर्मयोगी पर कविता “उन कर्मवीरों की क्या बात करें”

कर्मयोगी पर कविता

कर्मयोगी पर कविता

उन कर्मवीरों की क्या बात करें
जिन्हें भूला दिया इस दुनिया ने,
जो फर्ज के ख़ातिर अमर हुये
उन्हें टीस दिला दी दुनिया ने।

मोम सा दिल जो रखते थे
गम में औरौं के पिघलते थे,
उन अमर शहीदो को करो नमन
सीमा पे घूट -घूट के मरते थे,
हर युग में मुश्किल है जीना
ये सीख दिला दी दुनिया ने।

जो फर्ज के ख़ातिर अमर हुये
उन्हें टीस दिला दी दुनिया ने।

उस सागर की क्या बात करें
जो खारा होकर भी इतराता है,
जिसका मन हो झरने जैसा
वो सबकी प्यास बुझाता है,
हर युग में मसीहा होतें थे
पर हस्ती मिटा दी दुनिया ने।

जो फर्ज के ख़ातिर अमर हुये
उन्हें टीस दिला दी दुनिया ने।

सुकरात ने पाया जहर का प्याला
तो बापू ने भी गोली खाई थी,
दहशतगर्दों को दिया खदेड़
नींव आजादी की बिछाई थी,
उनके बलिदानों को याद करो
जिन्हें चीख दिला दी दुनिया ने।

जो फर्ज के ख़ातिर अमर हुये
उन्हें टीस दिला दी दुनिया ने।

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