आप पढ़ रहे हैं कोरोना पर कविता ( Koi Ise Corona Kah Le ) ” कोई इसे कोरोना कह ले ” :-

कोई इसे कोरोना कह ले

कोई इसे कोरोना कह ले

दुनिया का विस्तार बढ़ा पर बढ़ी एक लाचारी है,
कोई इसे कोरोना कह ले या कोई महामारी है।
दुनिया भर में दवा नहीं विज्ञान कि बड़ी विफलता है,
आधुनिकता के शास्त्रों में उल्लेख न इसका मिलता है।
महाशक्तियां महिमा मंडन से न फूले समाती थी,
तुच्छ प्राप्तियों पर जिनकी चौड़ी छाती तन जाती थी।
आज वही लाचार खड़े हैं कैसे अब उपचार करे,
बीच भंवर में नांव फंसी है कोई नईया पार करे।
यह बीमारी विश्व पे भारी महाकाल मंडराया है,
हो अदृश्य विष लिए विषाणु विश्व को काल दिखाया है।
समझेंगे जो आप इसे तो लोगों को समझाएंगे,
जो भी है सावधानी इसकी उतना करते जाएंगे।
प्रतिबंधों का आवाहन है आवाहन स्वीकार करो,
अपनों का ही भला है इसमें इसका मत प्रतिकार करो।
हाथ सफाई वस्त्र सफाई साबुन का उपयोग करें,
बार-बार हर बार हाथ को धोने का प्रयोग करें।
काम नहीं सरकारों का है सबकी जिम्मेदारी है,
शत प्रतिशत यह निशदिन प्रतिदिन सबकी भागीदारी है।
जो मानस जो ग्रंथ ज्ञान हम दुनिया को बतलाए थे,
और जो ज्ञान की सत संजीवनी हम जीवन में पाए थे।
जो ऋषियों मुनियों ने हमको सदाचार सिखलाया था,
नित्य मिलन पर प्रेम परिष्कृत नमस्कार बतलाया था।
मात्र दंडवत प्रणाम से ही द्वेष क्लेश सब मिटते थे,
और सदा करबद्ध नमन से मन प्रसन्न हो उठते थे।
वेद धर्म उपनिषद् पुराण मात्र काल्पनिक नहीं थे सब,
आदर्शों के धर्म कर्म भी प्रपंच जनित नहीं थे सब।
भरतवंश की परम्परा को हमने ठोकर मार दिया,
और तमस के तिमिर में वर्जित अनुचित नित्य आहार किया।
आज उसे हम भूल बैठ कर और भी आगे निकल गए,
आगे इतने निकल गए की धर्म कर्म से फिसल गए।
और फिसल गए इतना कि हम जीवन शैली भूल गए,
और क्षणिक सुख विषय भोग में हम इसके प्रतिकूल गए।
यह परिणाम है हे मानव तुमने सतवृत्ती खोया है,
कुटिल अनैतिक अधम आचरण से अब सबने रोया है।
मात्र कर्म ही प्राणिमात्र का भला बुरा कर पाया है,
पुण्य धरा पर पाप ने अपना जोर आज अजमाया है।
अब सामाजिक दूरी ही बस रामबाण हो सकता है,
और घरों के अंदर रहकर ही कल्याण हो सकता है।
योगासन प्राणायाम सात्विक भोजन का आहार करो,
और उष्णतम पेय पदार्थों का सेवन स्वीकार करो।
चेहरे पर हो मास्क हमेशा बार बार मुंह छुएं ना,
रखो हौसला हिम्मत का औे धैर्य को अपने खोएं ना।
यही मंत्र है देश काल में संयम का अनुपालन हो,
कम खाके घर में रहने का कुछ दिन तक परिचालन हो।
चिंता भी है चिंतन भी है मजदूरों की रोटी का,
कुंआ रोज खोदते थे जो उनके काम के खोटी का।
अगल बगल में आस पास में कुछ सहयोग बढ़ा देना,
नियम से कुछ कर पाओ तो प्रेम से भोग लगा देना।
बस इतनी सी अनुकम्पा हो कठिन काल को जीने में,
यह भी समय निकल जाएगा कालखंड के सीने में।
कोरोना से कभी डरो ना निश्चय विजय हमारी है,
हो उमंग उत्साहित मन तो बीमारी भी हारी है।
दीपक दिया तेल की बाती सभी साथ हो जाएंगे,
दृढ़ प्रतिज्ञ यह देश साथ है सबको यही बताएंगे।
अखिल विश्व भारत भर की यह एकरूपता देखेगा,
और निराशा से लडने की एकजुटता देखेगा।
तो आओ हम दिया जलाएं और विश्व को ढाढस दें,
मानव जाति को जिंदादिली से जीने का हम साहस दें।

रचनाकार का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव

प्यार का इजहार कविताधाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश

स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई
शिक्षा – स्नातक

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