बस्ते पर कविता
बस्ते पर कविता
शिशु है घर का गुलदस्ता,
ढो रहा बहुत भारी बस्ता,
खा रहा है स्कूल में पास्ता,
जीवन हो गया है खस्ता।
पीठ पर है बस्ते का भार,
हो रहा अब जीवन भार
सबके घर के हैं नौनिहाल,
बुरा हो रहा उनका हाल।
बच्चे जब स्कूल से आते,
चेहरे उनके हैं उड़ जाते,
खिन्न-खिन्न दिन भर करते,
नहीं कभी हंसते-मुस्काते।
छोटे बच्चे होते हैं कच्चे,
सब गूंगे बहरे हो रहे बच्चे,
झुक रहे हैं उनके कंधे,
क्यों नहीं ध्यान देते बन्दे?
सब कम्प्यूटर का दीवाना,
दिल दिमाग नहीं लगाना,
मां-बाप का न रहा जमाना,
खत्म हुआ रिश्ता निभाना।
किताब कॉपी कर दो आधी,
हो जाए कमर उनकी सीधी,
अब बन्द कर कमीशन खोरी,
हल्की कर रकम की चोरी।
पढ़िए :- बाल कविता नील गगन में | Bal Kavita Neel Gagan Me
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है सदानन्द प्रसाद जी ने संग्रामपुर,लखीसराय ( बिहार ) से। इनकी शिक्षा स्नातक,डिप. इन.फार्मेसी है। ये योग प्रशिक्षित हैं व भारतीय खाद्य निगम सेवा से निवृत्त हैं। साथ ही बिहार राज्य उपभोक्ता सहकारी संघ,लि., पटना में निदेशक भी रहे हैं।
प्रारंभ से ही समाज सेवा में इनकी अभिरुचि रही है व समाजवादी विचार धारा रही है। कर्पूरी टाइम्स एवं निरोग संवाद पत्रिका का संपादन कार्य भी इन्होंने किया है। विज्ञान का छात्र होने के बावजूद बचपन से ही हिंदी लेखन-पाठन में अभिरुचि रही है।
सामाजिक ,सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि पर इनकी काव्य रचनायें हैं। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन से जुड़ा हैं और हिंदी काव्य गोष्ठी में भाग लेते हैं।
“ बस्ते पर कविता ” ( Baste Par Kavita ) आपको कैसी लगी ? “ बस्ते पर कविता ” ( Baste Par Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
- हमारा फेसबुक पेज लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
धन्यवाद।
Leave a Reply