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माँ को समर्पित कविता

माँ को समर्पित कविता

माँ से है संसार प्रकाशित
माँ में ईश समाया है।
उस माँ को लाखों प्रणाम है
जिसने मुझे बनाया है।।

मेरी बचपन की नादानी
पर आँखों को मीचा है,
बुद्धि, विवेक, ज्ञान के जल से
माँ ने मुझको सींचा है,
मुझ पर पारस दृष्टि डालकर
जीवन पथ दिखलाया है,
उस माँ को लाखों प्रणाम है
जिसने मुझे बनाया है।।

अंतर्मन कोरा कागज था
जिसमें लाखों रंग भरें,
पाठ पढ़ाकर नैतिकता का
अवगुण सारे दूर करें,
प्रेम, दया, करुणा का जिसने
मुझमें भाव जगाया है,
उस माँ को लाखों प्रणाम है
जिसने मुझे बनाया है।।

सर्वस्व किया निछावर मुझपे
मुझको विद्या दान दिया,
रचनाओं के माध्यम से
जग में नव सम्मान दिया,
आज सफलता के शिखरों पे
माँ ने मुझे चढ़ाया है,
उस माँ को लाखों प्रणाम है
जिसने मुझे बनाया है।।

माँ से है संसार प्रकाशित
माँ में ईश समाया है।
उस माँ को लाखों प्रणाम है
जिसने मुझे बनाया है।।

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