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मकर संक्रांति पर कविता

मकर संक्रांति पर कविता

मकर संक्रांति आई है
एक नई क्रांति लाई है
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें है जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई है
मकर संक्रांति आई है
एक नई क्रांति लाई है,

मन में नई मस्ती आई है
तन में भी चुस्ती आई है
गुलज़ार सभी अब बस्ती है
समान सभी तो हस्ती है
कोई ऊंच नीच दुनियाँ में
यह बात बताने आई है
मकर संक्रांति आई है
एक नई क्रांति लाई है
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें है जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई है
मकर संक्रांति आई है
एक नई क्रांति लाई है ,

हर चेहरा है हँसता हँसता
फूल कली भी खिलता खिलता
तितली बाँगो में आई है
मचलती लेती अंगड़ाई है
भौरों को नहीं सुहाई है
मकर संक्रांति आई है
एक नई क्रांति लाई है
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें है जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई है
मकर संक्रांति आई है
एक नई क्रांति लाई है ,

गुड़ तिल औऱ मूंगफली
दान पुण्य और मिला मिली
रंगे बिरंगे पतंगों का डोर
भरा आकाश का ओर छोर
बढतें रहना सबसें आगें
छोड़कर हर मुश्किल पाछें
कटें ना काँटे किसी के धागे
छोड़ भँवर में क़भी ना भागें
यह बात सबकों बतलाई है
मकर संक्रांति आई है
एक नई क्रांति लाई है ।।

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रचनाकार का परिचय

बिमल तिवारी यह कविता हमें भेजी है बिमल तिवारी “आत्मबोध” जी ने जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश से। बिमल जी लेखक और कवि है। जिनकी यह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है :- 1. लोकतंत्र की हार 2. मनमर्ज़ियाँ 3. मनमौजियाँ ।

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