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पापा पर कविता
जिनके हम बच्चे है,
वो कितने अच्छे है।
मेरा अभिमान है पापा जी,
मेरा स्वाभिमान है पापा जी,
मेरे लिए मेरा आसमान है पापा जी,
मेरी तो पहचान है पापा जी।
हर गलती में थोड़ा सा डांटते है,
ये फिकर है उनकी मानते है,
हर एक गम को खुद सहते है,
कभी न कुछ कहते है पापा जी।
सामने कितना गुस्सा करते है,
डॉट के हमको खुद चुपके से रोते है,
मुश्किल में हो हम तो समझाते है,
रूठे कभी हम तो मनाते है पापा जी।
एक कुर्ता पूरे साल भर पहनते है,
हमको नित नए कपड़े पह नाते है,
चोट हमको लगे तो दर्द खुद सहते है,
खुद के दर्द के लिए बहाना करते है पापाजी।
मुश्किल घड़ी में भी धीरज नहीं खोते है,
हमको सुला के खुद रात भर नहीं सोते है,
दुखी होते है तो कोई गीत गुनगुनाते है,
मेरे सामने तो सदा ही मुस्कुराते हैं पापा जी।
मौन रहकर सब कुछ समझते है,
बहुत ही किस्मत से मिलते है पापा जी,
कभी भी किसी से नहीं घबराते हैं,
अपना फ़र्ज़ कितने अच्छे से निभाते है पापा जी।
मेरे लिए मेरा अनुशासन है पापा जी,
घर जिससे चलता है वो राशन है पापा जी,
आपसे से भी बड़े बने हम ऐसा आप सोचते है,
कैसे खड़े हो अपने पैरों में ये आपसे सीखते है पापा जी।
मेरे लिए अपनी जरूरत त्याग देते हैं,
मुझे मुझसे भी ज्यादा प्यार देते है,
बिना कहे मुझे सब कुछ मिल जाता है,
मिलता भी क्यों न मेरे तो विधाता है पापा जी।
जिनको हर समय मै अपने साथ पाता हूं,
आपके चरणों में नित शीश झुकाता हूं पापा जी।
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रचनाकार का परिचय :-
नाम – प्रशांत त्रिपाठी
पिता – श्री शिवशंकर त्रिपाठी
पता – गोपालपुर नर्वल कानपुर नगर
रूचि – कविता लिखना और गणित विषय अध्यापन कार्य।
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धन्यवाद।
बेहतरीन कविता ।
Super se bhi bahut bahut upar very nice..