आप पढ़ रहे हैं ( Pita Par Kavita ) पिता पर कविता :-
पिता पर कविता
Pita Par Kavita
उपहार पिता के
गिनती करना मुश्किल है,
उपकार पिता के
गिनती करना मुश्किल है।
नश-नश में जिसका रक्त बहे
रहे स्वाभिमान से भरा-भरा,
नभ भी मानो छोटा लगता
घर आँगन हो हरा-हरा,
इज्जत, शौहरत, रुतबे का
दम भरतें है परवाजों में,
उससे बढ़कर हित चिंतक
ना होगा कोई ओर जहाँ में,
कल्पतरू सा कद है उसका
गिनती करना मुश्किल है।
उपकार पिता के
गिनती करना मुश्किल है।
जीवन पथ पर चलने का
हरपल जिसने पाठ पढा़या,
अरमानों को परे हटाकर
संस्कारो से हमें नहाया,
उस पिता की पुण्याई को
हम नहीं कभी मिटनें देंगे,
त्याग तपस्या बलिदानों सें
जग को नयी छवि देंगें,
परिभाषा उसके संयम की
गिनती करना मुश्किल है।
उपकार पिता के
गिनती करना मुश्किल है।
प्यार का सागर जब वो लाते
माना कुछ भी कह नहीं पाते,
मन की पीड़ा और दु:खों को
बिन बोले समझ वो जाते,
असमंजस के घोर पलों में
अमिट नया विश्वास जगाते,
बच्चों की ख़ुशीयों के ख़ातिर
अपने सारे फर्ज निभाते,
जीवन में उनके संघर्षों की
गिनती करना मुश्किल है।
उपकार पिता के
गिनती करना मुश्किल है।
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