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बुद्ध पूर्णिमा पर कविता

बुद्ध पूर्णिमा पर कविता

संसार के ख़ातिर जो त्यागें ख़ुद की इच्छा, बुद्ध वही हैं
त्यागकर महलों की सुविधा मांगें भिक्षा, बुद्ध वही हैं
मानव के कल्याण ख़ातिर ले ले दीक्षा, बुद्ध वही हैं
प्रयास से जिसके जगत की दूर हो तृष्णा, बुद्ध वही हैं

देखकर संसार की दुर्गति,ख़ुद को खपा दे, बुद्ध वही हैं
दिलाना चाहें सबकों मुक्ति,ख़ुद को हटा के, बुद्ध वही हैं
सह ले सबका क्रोध हिंसा मुस्कुरा के, बुद्ध वही हैं
ला दे सबकों अपनें वचन से सत्य रहा पे, बुद्ध वही हैं

सम्यक दृष्टि समभाव संतुलन बनकर रहें जो, बुद्ध वही हैं
देख कर विपदा विषाद में डंटकर रहें जो, बुद्ध वही हैं
अन्वेषक सा बनकर चाहे समाधान संसार का जो
समभाव सा बनके जगत में सागर सा बहें जो, बुद्ध वही है

जन्म रहस्य और मृत्यु का सपना जला दें, बुद्ध वही हैं
मानवता अहिंसा सबकें मन में जगा दें, बुद्ध वही है
किसी से कोई नफरत द्वेष घृणा तनिक ना मन में रखता
सरल सहज़ और शुद्ध हृदय से अपना बना ले, बुद्ध वही हैं

जटिल जीवन नहीं साधु जैसा सहज़ जीवन से मुक्ति, बुध्द है
वर्ण वर्ग कुल जात पात नहीं मौलिकता से मुक्ति, बुद्ध हैं
भक्ति क्रांति का व्यापार मिटाके तोड़े वर्ग विशेष का शान
सत्य शांति और सतपथ चलकर मानवता से मुक्ति, बुद्ध है ।।

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रचनाकार का परिचय

बिमल तिवारी

 यह कविता हमें भेजी है बिमल तिवारी “आत्मबोध” जी ने जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश से। बिमल जी लेखक और कवि है। जिनकी यह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है :- 1. लोकतंत्र की हार  2. मनमर्ज़ियाँ  3. मनमौजियाँ ।

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