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अपना गाँव कविता

अपना गाँव कविता

माना कि आज सबको शहर पसंद है,
तो तुम गांव नहीं आते हो …
और मेरे गांव को गवार कहते हो ।

पता है हमें औकात शहर की ..
रिश्तो के अपनेपन को
तार-तार देखा है।

सूने पड़े मकान, वीरान होते गांव
उजड़ रहा प्रेम मां बाबा का।

होगा याद सबको ?
वह गांव का छोटा सा स्कूल
जहा सब साथी सखा शिक्षा
और संस्कार लेने जाया करते थे,
जहां गुरुजनों का सम्मान किया करते थे।

होगा याद सबको ?
हमारा वो बचपन जहां
बेफिक्र होकर जिंदगी जिया करते थे,
नदी तालाबों
पर कूद-कूद कर नहाया करते थे।

होगा याद सबको ?
गाँव के वह मंदिर और हर त्यौहार
खूब नाच-नाच कर मनाया करते थे ।

होगा याद सबको ?
बहुत बड़ा सा घर है गाँव मे ,
फिर क्यू आज छोटे से फ्लैट में ,
दर्द घुटनों का बयां करते हो ।

आज सुनसान पड़े है गांव, घर,
मोहल्ला, मंदिर,इमली बरगद के पेड़ निराले ..
क्यों उजड़ रहे गाँव हमारे ।

कितना सुखद सुहाना बचपन था हमारा।
मत भागो दूर अपने अस्तित्व से
पीढ़ी दर पीढ़ी बीता हैं जहां जीवन हमारा ।

माना कि हर रोज नहीं रह सकते गाँव में,
कुछ समय बिताने आ जाया करो गाँव में
सर्दी,गर्मी, बारिश ना सही शादी-ब्याह
बार-त्यौहार तो आया करो ।

हमारा जो जीवन शहरों की उन
वीरान गलियों में
जहां नहीं है कोई अपना,
आओ कभी मेरे गाँव में जहाँ
प्रेम की बारिश है।
माँ-बाबा,काका,दादा का
असीम स्नेह है ।

होगा याद सबको ?
जब माँ ले-लेकर बलेयाँ नजरें उतारती,
बाबा घूम-घूम कर गाँव में
बच्चे मेरे आए हैं कहते हैं सबको ।

फिर से अपने बचपन को जीने,
कभी-कभी अपने गाँव जाया करो ।
छोड़कर शहरी जीवन थोडा ,
परिवार रिश्ते-नातों से जुड़ जाया करो,
गाँव की मिट्टी से थोडी
खुशबू लिया करो।

कहती है मीनू दिल माँ
भारती का बस्ता है गाँवों में।
अब एक बार हर बरस गाँव भी आया करो।


रचनाकार का परिचय

मीनाक्षी राजपूरोहित " मीनू "

नाम – मीनाक्षी राजपूरोहित ” मीनू ”
पिता – विशन सिंह राजपूरोहित
माता – पुष्पा राजपूरोहित
पता – पोस्ट – बस्सी
ज़िला – नागौर राजस्थान ,पिन, 341512
शिक्षा – स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य , समाजशास्त्र , इतिहास (महर्षि दयानन्द सरस्वती यूनिवर्सिटी अजमेर (राजस्थान)
कार्यक्षेत्र – गृह कार्य एवं विद्यार्थी

मीनाक्षीजी की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं इसके साथ ही उन्हें साहित्य जगत में कई सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं।

आत्मकथ्य – लेखन कुछ नया करने का एक आयाम है। अपने भाव, मन की मनोदशा को उतारना लिखना। क्योंकि साहित्य के बिना संस्कृति उदासीन है । मेरे जीवन का उद्देश्य है कि मेरी रचना पढ़कर किसी के जीवन को अगर दिशा मिली तो मेरा लिखना सफल होगा ।लिखना कोई मनोरंजन नहीं होता यहां लेखक अपने ह्रदय की गहराइयों से रचना को उकेरता है । हम हमारे जीवन को एक दिशा दे सकते हैं। “एक कवि की कल्पना शब्दों में बंधी नहीं होती” हम सृजन को किसी भी रुप में देश -भक्ति ,राष्ट्रीय एकता, प्रेम,मानवता माँ-पिता …
अत!साहित्य का आधार ही जीवन है। साहित्यकार आत्मसंतुष्टि ,
सुखानुभूति ,प्रेरणा ,जागृति संवेदना वह मानवीयता को प्रभावित करना है।लेखन अपने खुद के मनोभावों को व्यक्त करना जनमानस तक अपनी बात पहुंचाना । अपने काव्य द्वारा सामाजिक चेतना को जगाना में चाहती हूँ कि मैं ऐसा कुछ लिखूं कि मेरे लिखने से अगर मैं किसी के विचार बदल पाई तो मैं धन्य समझूंगी । बचपन से लिखने का शौक था। पर कोराना काल मैं फिर से लिखना शुरू किया। वैसे माँ बीमार थी तो माँ पर कुछ ना कुछ लिखना आदत हो गई तो मेरे बड़े जीजा राज कंवर ने मुझे लिखने के लिए जो प्रोत्साहित किया उसके लिए हृदय से आभारी हूँ । आप सभी बड़ो का व परिवार जन का आशीर्वाद बना रहे ऐसी उम्मीद के साथ अपनी लेखनी को आगे बढ़ाने की कोशिश करती हूँ

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