Apno Par Kavita – आप पढ़ रहे हैं माँ पापा की याद में कविता –

Apno Par Kavita
अपनों पर कविता

Apno Par Kavita

माँ-पापा के श्वास-श्वास की
मैं धड़कन सुन लेता हूँ,
अपनों से पाके प्यार मुहब्बत
यूँ कविता बुन लेता हूँ।

घर की चार दीवारी में देखो
सब हिस्से घूम रहे है,
आँगन में चारों भाई-बहन के
सब किस्से घूम रहे है,

होंठों पे मुस्कान सभी के
मस्तक बन बैठे गमगीन,
चेहरों को ना पढ़ पांऊ मैं
ऐसे बने हुए है सीन,

नयनों के अश्रु से मैं
सब मोती चुन लेता हूँ।
अपनों से पाके प्यार मुहब्बत
यूँ कविता बुन लेता हूँ।

देह नहीं है पापा की अब
पर मन में चहल-पहल है,
अधरों पे है मौन धरा
भीतर भरा कोलाहल है,

किन आँखों से झाँकु घर में
सब में संवाद भरा है,
जो जितना ख़ामोश खडा़ है
उतना अनहद नाद भरा है,

कविताओं के जरीये मैं
उनकी यादों को सुन लेता हूँ ।
अपनों से पाके प्यार मुहब्बत
यूँ कविता बुन लेता हूँ।

मीठी यादों के तकीये पर
सिर रखकर सोता हूँ,
मन पिघले तो दो आँखों की
कोरी को धो लेता हूँ,

ठिठकी हुई खड़ी मिलती है
किसी नदी के तीरे,
कभी स्वयं ही चलकर आती
मुझ तक धीरे-धीरे,

दो शब्दों के बीच जडी़ मैं
चुप्पी को सुन लेता हूँ,
अपनों से पाके प्यार मुहब्बत
यूँ कविता बुन लेता हूँ।

माँ-पापा के श्वास-श्वास की
मैं धड़कन सुन लेता हूँ,
अपनों से पाके प्यार मुहब्बत
यूँ कविता बुन लेता हूँ।

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