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बचपन की यादों पर कविता

बचपन की यादों पर कविता

बचपन की यादों ने फिर से
लौटाया मोहक सा दृश्य अनोखा।
जब हमने गांव की गलियों में
बच्चो को कोलाहल करते देखा।।

सहसा डूब गया स्मृतियों में
देखे वही सारे बचपन के दृश्य।
जो क्षण में समय की गति ने
नन्हा जीवन किया था अदृश्य।

समक्ष अाई पुनः पतंग वही
जिसे ले जाते थे आसमान में।
खुशियों की हरियाली आती थी
हमारे खाली मन के रेगिस्तान में।।

सपनो के पंख लगाकर सब
उड़ते थे कल्पना संसार में।
राजकुमार बन कर होते खुश
प्रजा से मिले अमूल्य प्यार में।।

सपनो की कोई सीमा न थी
न थी कोई जमाने की फिक्र।
जहां कठिनाई का शब्द न था
व विफलता का नहीं था जिक्र।।

तितलियों के पीछे दौड़कर
प्रकृति मां के आंचल में हम।
फूलों की खुशबू को सूंघकर
आती खुशी भागता था गम।।

क्षण भर में लुप्त हुई सारी
स्मृतियां बचपन की अनमोल।
समय ने फिर आदेश दिया
व्यतीत पल न फिर से खोल।।

पढ़िए :- मेरा बचपन पर कविता ” नन्हें से बचपन की ओर “


नमस्कार प्रिय मित्रों,

सूरज कुमार

मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।

क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

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