बदलते समय पर कविता :- वृद्धाश्रम जाने से पहले एक वृद्ध माँ-बाप उसके बच्चे के बीच के वार्तालाप पर कविता, बड़ी पीड़ा होती है वृद्धाश्रम देखकर, पर अगर ये वृद्धाश्रम ना होते तो?

बदलते समय पर कविता

बदलते समय पर कविता

समय का पहिया घूम रहा है, बदल रहे सब लोग,
आपस का सब घटा प्यार अब, है कैसा संजोग
बेटा पिता कें पैर छुए ना,लाज कर रहा भारी,
भारत की संस्कृति ना समझे लगा गजब ये रोग
आपस का सब……….

जीवन की हर विपदा झेला, उफ़ ना कुछ मुंह से बोला,
पर बेटा जो अब बड़ा हो गया,आज सामने मुंह खोला,
बोला पिता से अब ना निभेगा,कुनबे का ये बोझ ||1||
आपस का सब……….

घर के माली हालत का,दशा दिशा अब बदल रहा,
कैसे संभालू बोझ आज मै,वेतन भी अब कम पड़ रहा
आप भी समझो दूर करो,जो चिक चिक होता हर रोज ||2||
आपस का सब………..

पिता कहे बेटा चारा क्या, चुन चुन कर इस घर गढ़ा है
ख्वाबों का एक घर था बनाया,जिससे अपना रूह जुड़ा है
टूटी चप्पल भी मैंने पहनी,तब तू जाके पढ़ता था रोज ||3||
आपस का सब……….

बेटा बोला बात कर लिया, वृद्धाश्रम की करो तैयारी,
सुखी रहेंगे आप वहां पर, मिट जाएगा झंझट सारी,
आंख में आंसू, हांथ में झोला,दूजे छत का करने खोज||4||
आपस का सब…….

मा बाप है इनको प्यार करो,ना दुत्कारे भाई मेरे,
जिनके सर पर हांथ हो इनका,दुख के भी ना पड़ते फेरे,
आप रहे नित साथ सदा,विनती करता संजय कर जोर||5||
आपस का सब…….

पढ़िए :- समय पर कविता “समय आएगा”


रचनाकार का परिचय

संजय पांडेय

यह कविता हमें भेजी है संजय पांडेय जी ने जौनपुर,उत्तर प्रदेश से।

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