Deepak Par Kavita – आप पढ़ रहे हैं दीपक पर कविता – दीपक हूँ, मैं शुभ दिवाली
Deepak Par Kavita
दीपक पर कविता
अदम्य गगन में, बैठा सूरज
आलौकिक, संदेश देता
समर्पण की, नदियाँ भर
नि:स्वार्थ आलोक, बिखराता है।
दीपक हूँ, मैं शुभ दिवाली
मुझसे सजती, आरती थाली
जल-जल कर भी, जगमग करता
हंसना सूरज से, सीखा है।
दीपशिखा, आकर मुझ में
शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध
उजियारे भर, करती नृत्य
मेरे नेत्र बन, वो रहती है।
ताप ज्वाला से, जलता तन
श्रद्धा से साधना, करता मन
सारी संसृति में, मैं प्रेम पुनीत
तारों की झिलमिल मुझ में है।
दिवा-निशा की,संधि वेला में
मैं मंदिर-मंदिर में, श्रद्धा दिप्त
हर प्रांगण में, प्रकाश पुंज भर
मुझ में सूरज सा, समर्पण है।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है इली मिश्रा जी ने।
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