धरती पर कविता

धरती पर कविता

धरती मानव की जान है
समाया इसमें जहान है,
प्रकृति सुख हमको देती
महिमा सबसे महान हैं।

मानव को पुत्र मानकर
एक जैसा सबसे करती प्यार,
अनाज का भरके भंडार
कृपा करती हैं बार बार।

वृक्षों की छाया में राही
अपनी थकान को देता आराम,
फल खाकर व पानी पीकर
मधुर हवा लेता है आठो याम।

वृक्ष धरती के हाथ है यारो
इनको तुम मत काटो भाई,
लुटेरा बनकर न लूटो इसको
इसमें तुम्हरी प्राण वायु समाई।

जीवन में कुछ वृक्ष लगाकर
वसुधा का तुम कर्ज चुकाओ,
हरा भरा पर्यावरण करके
धरा को सुंदर स्वर्ग बनाओ।

इस अनमोल पैगाम का तुम
सच्चे दिल से करो प्रचार,
प्रदूषण न फैलाकर के
इतना हम करे उपकार।

फिर से महकेंगे फूल चारों ओर
खिल उठेंगे खेत खलिहान,
पक्षी मोहक गीत गा कर के
अम्बर में भरेगे स्वच्छ उड़ान।

बहुत आसान है यह काम
वृक्ष लगाओ खुद पर करो एहसान,
आज नहीं मानव तू समझा
तो जगत बन जायेगा रेगिस्तान।

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अजय पालमेरा नाम अजय पाल है। मैं बिहार के सिवान जिले के सहारनपुर गांव का रहने वाला। मेरे द्वारा सकारातमक शब्द लिखने के माध्यम से अगर समाज में लोगों की सोच में बदलाव आता है तो यह मेरे लिए प्रेरणा होगी।

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