शेफ पर कविता – Ek Hotel ke chef ki kavita
आप पढ़ रहे हैं शेफ पर कविता “हां मैं एक शेफ हूं” :-
शेफ पर कविता
हां मैं एक शेफ हूं, तो कुछ के लिए एक कुक हूं
अन्नपूर्णा सा कर्म मेरा, एक रेसिपी की बुक हूं।
ज़ायका जांच जांच कर, जायका बन गई जिंदगी
हर जिव्या पर नाम छोड़ा, सॉस ग्रेवी से ही बंदगी।
नजरों में आम नहीं मैं, अपनी नज़रों में अहम हूं
अतिट्यूड सा देखते मुझमें, चकाचौंध सा बहम हूं
बरखा, त्योहार, पर्व, उत्सव सा, बाहर जाता हूं मै
पहचान मेनू प्लानिंग, ऑपरेशन से कर पाता हूं मै
मेरे अपने अवसर आपकी पार्टियों पर ही होता
अतिथि भगवान होता, भगवान सदा सही होता।
शेफ शब्द गरिमापूर्ण है, ये कर्म ही मैंने चुना है
शिकवा नहीं करियर से, नींव से ही मैंने बुना है।
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मैं संदीप सिंधवाल संजू पुत्र श्री तुंगडी सिंधवाल रौठिया रुद्रप्रयाग उत्तराखंड का निवासी हूं। मैंने हिंदी में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम. ए. किया है तथा कलनरी आर्ट फूड साइंस में बी. एस. सी. किया है। 5 साल दिल्ली के एक होटल में शेफ की नौकरी करने के पश्चात मै 5 साल से ऑस्ट्रेलिया के समीप पोर्ट मोरस्बी में कार्यरत हूं। मेरा व्यवसाय मेरे लेखन से बिल्कुल विपरीत है।
विदेश में रहकर भी मैंने बहुत कविताएं लिखी हैं। मै सन 2000 से कविताएं लिखता हूं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। मैट्रिक पास करने के बाद ही मेरी कविता रचना मै रुचि बढ़ी। भगवान रुद्र पर कविता लिखना मेरा सौभाग्य है। विदेशों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए भरसक प्रयास करता हूं।
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