गाँव की याद पर कविता

गाँव की याद पर कविता

गाँव की याद पर कविता

यूँ ही बैठे-बैठे ख्याल आ गया,
कि मन में हमारा गाँव आ गया।
वो बचपन की मस्ती भरे रात-दिन,
ये देखो मैं महुआ की छांव आ गया।।

वो खेतों में जाना, वहां काम करना,
मिले जब भी मौका तो भैसें चराना,
कबड्डी, पकिल्लो, गुड़ी डण्डा, खो खो,
वो पेड़ों पे चढ़ना याद आ गया।।
यूँ ही बैठे-बैठे ख्याल आ गया,
कि मन में हमारा गाँव आ गया।।

वो बैलों को ले जाके पानी पिलाना,
ठोकरा में घिस-घिस के उनको नहलाना।
पकड़ पूँछ नदिया के उस पार जाना
उसी भांति वापस फिर इस पार आना,
नदी बीच गिर-गिर के खुद भी नहाना
याद आ गया।।
यूँ ही बैठे-बैठे ख्याल आ गया,
कि मन में हमारा गाँव आ गया।।

भरी दोपहर बाग खलिहान जाना,
वो चुन ढाक पत्तों का दोना बनाना,
पकड़ बकरियों को जबरदस्ती दुहना,
छोहरिया लगाकर जमा करके खाना
वो किस्सा पुराना फिर याद आ गया।
यूँ ही बैठे-बैठे ख्याल आ गया,
कि मन में हमारा गाँव आ गया।।

धमा-चौकड़ी करते स्कूल जाना,
बना गोल घेरा वो चिल्ला के पढ़ना,
नए टाट ख़ातिर वो लड़ना-झगड़ना,
वो मुन्शी पुराना फिर याद आ गया।।
यूँ ही बैठे-बैठे ख्याल आ गया,
कि मन में हमारा गाँव आ गया।।

वो स्कूल की छुट्टी होते ही भगना,
तुरत प्लान करके वहीं सबका रुकना,
वो आपस की ईर्ष्या,जलन,रन्जिशों को
वहीं गेंदतड़ी में ही निपटा के आना,
कटी ट्यूब से टाईट गेंदों का
निर्माण याद आ गया।।
यूँ ही बैठे-बैठे ख्याल आ गया,
कि मन में हमारा गाँव आ गया।।

कहीं शादियों में बधावा का आना,
कभी रिश्तेदारों का यूं मुह फुलाना,
सभी नातेदारों की आराम ख़ातिर
पूरे गाँव की खटिया उठवा के लाना
वो मेहमानों के जूठे कुल्हढों से

नगाड़ा बनाना याद आ गया।
यूँ ही बैठे-बैठे ख्याल आ गया,
कि मन में हमारा गाँव आ गया।।

पढ़िए :- गाँव पर कविता “गाँव को भूल गए”


रचनाकार का परिचय

आर0 एल0 गुप्ता

नाम : आर0 एल0 गुप्ता
शिक्षा : स्नातकोत्तर (समाजशास्त्र).
व्यवसाय : शासकीय सेवा
निवास : लखनऊ

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