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कविता संविधान पर

संविधान दिवस पर कविता

जब सन 47 में हुआ था,
स्वतंत्र राष्ट्र मेरा।
मिले विधान इसको अपना,
तब होगा नया सवेरा।।

वामपंथी आंदोलन नेता ने,
सन 34 में दिया सुझाव मेरा।
उनके पीछे मांग उठाई कांग्रेस,
सन् 35 में हो गठन मेरा।।

नेहरू भी बोल उठे 38 में,
व्यस्क मताधिकार सहित हो, निर्माण मेरा ।
कोशिश की सन 46 में,
गठन करे संविधान सभा रूप मेरा।।

क्रिप्स संग 42 में,
आया एक प्रारूप मेरा।
ठुकराया मुझको मुस्लिम लीग ने
और खूब धुतकारा ।।

फिर भेजा कैबिनेट मिशन,
कुछ हद तक हुआ मुस्लिम लीग संतुष्ट सारा।।

मिलके 389 सदस्यों से,
पर 289 से गठन हुआ मेरा ।
उसमें भी भंज पड़ा,
किया लीग ने बहिष्कार मेरा।।

फिर सच्चिदानंद के संग,
दिसंबर 46 में हुआ,आगाज मेरा।।

दिन अट्ठारह माह 11 लगे,
संग में, पूरे 2 साल।
तब जाकर यह भारत,
बना सारे जहां की मिसाल।।

गांव अंबोड़ा धन्य है,
उपजा भीम रूपी अंकुर।
राव, राज भीमा देवी,
शील स्वभाव, सरल स्वरूपा।।

पाई उपाधि सागर से,
तब नाम डॉ आंबेडकर छाया ।
रचा प्रारूप मेरा,
चांदी के पन्ने पर मुझको लिखवाया ।।

हूँ दिलाता मैं राज,समाज,
आर्थिक, न्याय सबको।
बहिष्कृत समाज में किया जिनको,
हूँ मैं सहारा उनका ।।

बिखर गए मजदूरी करते,
बिक गए कुर्ता, पायजामा।
खड़ा हूँ प्रहरी बनके,
हूँ मैं नजर में उनके रखवाला।।

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रचनाकार का परिचय

नरेश नालिया "राज़"यह कविता हमें भेजी है रेश नालिया “राज़” जी ने नागौर (राजस्थान) से।

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