आप पढ़ रहे हैं गंगा पर कविता ” बहती धारा ” :-
गंगा पर कविता
शिव की शिखा से बहती
वह अमृत अविरल धारा।
स्वर्गलोक से उतर धरा,
लोगों के पापों को तारा।
जन लोक कल्याण कर,
सबका जीवन तारा।
अपने साथ वह लाई,
कई अन्य बहती धारा।
मानव ने अपने पाप धोने में,
उसे प्रदूषित कर डाला।
मानव ने अपने स्वार्थ का,
एक उदाहरण दे डाला।
मगर गंगा अपने पवित्र मन से,
निरंतर बहाती रही धारा।
जब मानव पर विपदा पड़ी,
और स्वयं का दोष दिखा सारा।
तब उसने प्रतिज्ञा ली और,
बचाने का प्रयास शुरू कर डाला।
जब तक रहेगा जीवन काल
बहती धारा तृप्त करेगी जग सारा।
पढ़िए :- गंगा नदी पर कविता ” माँ गंगा ”
रचनाकार का परिचय
नाम: बिनीता नेगी
शिक्षा: एम. ए. बी. एड.( अंग्रेज़ी)
बिनीता जी एक गुज्जू पहाड़ी है, जो मूल निवासी पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड से हैं परंतु बचपन से पिछले एक साल तक गुजरात में रही हैं। इसी वर्ष ओरिसा में आई हैं। उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में २२ साल का तजुर्बा हैं। वे विद्यालय की हेड मिस्ट्रेस रह चुकी हैं। लिखना उनकी रुचि रही है। उनकी रचनाएं सांझा काव्य संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं।
उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उनकी संस्था से कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
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धन्यवाद।
मन की बात शब्दों में बयां करी है।
Amazingly written
Wow such beautiful words