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गणतंत्र दिवस की हिंदी कविता
गणतंत्र का पर्व है
सबको बधाई ,
नमन है उस महामानव को
जिसने दिया भारत को संविधान ।
जहां जातिवाद का जहर था,
धर्म सर्वोपरि था ।
वहां अकेला लड़ा वो महामानव,
मानवता का सन्देश था ।
जाति धर्म, अपमान का विष पीकर
बदलाव लाने की ठाने थी ।
कक्षा के बाहर बैठकर,
शिक्षा जब पाई थी ।
वर्णव्यवस्था का चलन था,
जिसमें वर्ण अनुसार ही कर्म था ।
ठुकराकर उस वर्णव्यवस्था को,
दहन मनुस्मृति का किया ।
कदम कभी ना डगमगाए,
होंसले बुलन्द थें ।
ज्योतिबा को गुरु माना,
कबीर की वाणी थी ।
एक कलम ने ऐसा इतिहास बनाया,
भारत को गणतंत्र देश बनाया ।
जब बाबा साहेब ने अकेले
भारत का संविधान बनाया ।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है नीरज सिंह कर्दम जी ने बुलंदशहर (यूपी) से।
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