हिन्दी कविता एक सपना
एक सपना मैं भी बुनता हूँ ।
अपने सपनों की चहा मैं हम
उड़े जा रहे है , गिरे जा रहे ।
अपने रिश्तों को हम खोए जा रहे हैं
हम सपने बुनते जा रहे है ।
सपनों की चाह में हम
धीरे- धीरे मिटते जा रहे है ।
उम्मीदों पर हम टिकते जा रहे है ।
बढ़ते जा रहे है चलते जा रहे है ।
अपनी दुनिया , बनाने लेकिन
इस दुनिया मैं ही उलझे जा रहे है
पलभर सपनों की तलाश में ,
कुछ के अपने खो जा रहे ,
ओर हम अपने से ही खोए जा रहे ।
सपनो को दुनियां में हम जिए जा रहे है
हजारों उलझनों में हम उलझे जा रहे।
इन रंगबिरंगे सपनो मैं हम डूबे जा रहे है।
हम जिए जा रहे है मरे जा रहे है।
अपने सपनों की चहा मैं हम उड़े जा रहे हैं,
हम सपने बुनते जा रहे है।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है हर्षुल ललेरिया जी ने मंतौड़ी. मुजफ्फरनगर ( उत्तर प्रदेश ) से।
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धन्यवाद।
v nice dil ko chu Rahi hai sir aapki ye poem