हिंदी ग़ज़ल समंदर सी आँखें
हिंदी ग़ज़ल समंदर सी आँखें
समंदर-सी आँखें उधर तौबा-तौबा
इधर डूब जाने का डर तौबा-तौबा
न कर ये, न कर वो, न कर तौबा-तौबा
यों गुज़री है सारी उमर, तौबा-तौबा
वो नज़रें बचाकर नज़र से हैं पीते
लगे ना किसीकी नज़र, तौबा-तौबा
झुके थे वो जितना, हुआ नाम उतना
था घुटनों में उनका हुनर, तौबा-तौबा
मैं टेढ़ी-सी दुनिया में सीधा खड़ा हूँ
गो दुखने लगी है कमर, तौबा-तौबा
यों ज़ालिम ने सारे, चुराए हैं नारे
कि करने लगा है गदर तौबा-तौबा
पढ़िए :- ग़ज़ल – बावरा मन | Ghazal Bawra Man
यह ग़ज़ल हमें भेजी है संजय ग्रोवर जी ने दिल्ली से।
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