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प्रजाशासक पर कविता

प्रजाशासक पर कविता

तेरे अन्दर मेरे अन्दर,
कुछ बात दबी है सीने में।
प्रजा-शासक मौन है,
क्या मजा आ रहा जीने में।।

जुबां खुली जब भी,
कलंकित देशद्रोही माना
खंडन किया जब भी,
भड़काऊ विद्रोही माना।
सोम रस तो नहीं मांगता,
जहर घोल दिया पीने में।
प्रजा-शासक मौन है,
क्या मजा आ रहा जीने में।।

जिनको जरूरत नहीं
वो कुछ नहीं बोलता
जिनको जरूरत है
वो भी मुंह ना खोलता।
आम आदमी घुन है,
मिट जाता संग गेहूं पीसने में।
प्रजा-शासक मौन है,
क्या मजा आ रहा जीने में।।

जुल्मी के हौसले बुलंद
राजनायक के तेवर द्वंद
गरीब की दुकान बन्द
समाज में फैलती गंद।
आंख बन्द अत्याचार पर,
जिंदगी कट रही घिसने में।
प्रजा-शासक मौन है,
क्या मजा आ रहा जीने में।।

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संदीप सिंधवालमैं संदीप सिंधवाल संजू पुत्र श्री तुंगडी सिंधवाल रौठिया रुद्रप्रयाग उत्तराखंड का निवासी हूं। मैंने हिंदी में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम. ए. किया है तथा कलनरी आर्ट फूड साइंस में बी. एस. सी. किया है। 5 साल दिल्ली के एक होटल में शेफ की नौकरी करने के पश्चात मै 5 साल से ऑस्ट्रेलिया के समीप पोर्ट मोरस्बी में कार्यरत हूं। मेरा व्यवसाय मेरे लेखन से बिल्कुल विपरीत है।

विदेश में रहकर भी मैंने बहुत कविताएं लिखी हैं। मै सन 2000 से कविताएं लिखता हूं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। मैट्रिक पास करने के बाद ही मेरी कविता रचना मै रुचि बढ़ी। भगवान रुद्र पर कविता लिखना मेरा सौभाग्य है। विदेशों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए भरसक प्रयास करता हूं।

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