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हिंदी कविता बड़ा अभिमान था

हिंदी कविता बड़ा अभिमान था

रूप लावण्य पर कभी नाजो गुमान था।
सुन्दर देह पर कभी बड़ा अभिमान था।।

ली करवट जिन्दगी ने, प्राणो ने तज दिया शरीर।
सन्नाटे का आलम था, सबकी भावभंगिमा थी गम्भीर।।

नजरो का आईना देखा, तो आज इक अलग ही सम्मान था।
सुन्दर देह पर कभी, बड़ा अभिमान था।।

सजा के रखा मखमल की तरह, यूं लकड़ियों मे दबा दिया।
फिर झट चिंगारी दिखा, वजूद को धूयें मे उड़ा दिया।।

तब्दील हुआ वो मिट्टी मे, जिसपे कभी बहुत मान था।
सुन्दर देह पर कभी, बड़ा अभिमान था।।

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रचनाकार कर परिचय

चारू मित्तल

यह कविता हमें भेजी है चारू मित्तल जी ने मथुरा, उत्तर प्रदेश से।

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