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हिंदी कविता बेबसी का ज्ञान

हिंदी कविता बेबसी का ज्ञान

बहुत दिनों की बात है
जब देखा मैंने खुद लाचारी को…..
शब्द नहीं है कहने के लिए …..

क्या ऐसा भी होता है ??
कीचड़ और अन्न का
भेद मिटाता हुआ एक बुजुर्ग …..
गन्दगी से लथपथ कीचड़
झूठी पत्तलों के नीचें से …
कुत्तों से लड़कर चने निकालता हुआ
बेबस और लाचार बुजुर्ग।

अपनी भूख को तृप्त करने के लिए
उठाकर हाथों में प्यार से खाता हुआ
मानों आंसुओ से धो रहा हो चने को

विस्मय है – गरीबी से पीड़ित या
एक पिता को घर से बेघर करने का दुख ….
मानसिक प्रताड़ना का दुख …..

रास्ते पर अनगिनत बेजुबान झपटते थे,
अपनी भूख शांत करने के लिए
देख कर भी नहीं देख रहे थे,
वो अन्धे और बेजान लोग …..

उस वक्त चिथड़े कर देता है,
मानवता की झूठी शान को ….
फिर-फिर होता है शिकार और एक बुजुर्ग ।

पढ़िए :- पिता के लिए कविता “वह पिता हमारा”


रचनाकार का परिचय

बिट्टू कौर

यह कविता हमें भेजी है बिट्टू कौर जी ने खड़गपुर से।

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