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हिंदी कविता बेरंग
रँग बदलती इस दौर मे
लोग कितने बेरँग है
हाव – भाव सब दिखाने के है
अंदर से कमजोर है
रिश्ते – नाते सब बोझ लगे
फिर भी ढोते सब लोग हैं
कोई किसी का हाल ना पुछे
क्या यही जीवन का डोर है
अनमोल है जिंदगी यहाँ
फिर ना कोई मोल है
पल – पल मिट रही है यहाँ
ये कैसा जिंदगी का दौर है
बचपन बीता आँगन में
जवानी सड़को का खाक है
अकेले बसर कर रहे हैं
धूंवे का बस दौर है
कैसे रँग भरे जीवन मे
मन मे यही विचार है
पल में बदलते लोग यहाँ
ये कैसी बेरँग सँसार है।।
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रचनाकार का परिचय
नाम – गनेश रॉय “रावण”
पिता का नाम- श्री चितराम रॉय
माता – श्रीमती फेकन बाई रॉय
स्थाई पता- ग्राम – भगवानपाली , डाकघर – ओखर , तहसील – मस्तूरी, जिला – बिलासपुर, पिन – 495551 राज्य – छत्तीसगढ़
व्यवसाय – मशीन ऑपरेटर नितिन स्पिननर्स भीलवाड़ा , राजस्थान
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