आप पढ़ रहे हैं पंकज कुमार द्वारा रचित हिंदी कविता : भोग :-
हिंदी कविता : भोग
यह भोग क्या
है सोच क्या?
संयोग नास्तिक
है रोग क्या?
जीवंत शाखा टूटती
सममूल ही तोड़ती,
अधर्म नाता है हुआ
कालिख मुंह में पोतती।
सत्य का निष्पक्ष पुजारी
कैसे दुर्बल हुआ,
अहिंसा का मनुरागी
कैसे वासना वासी हुआ।
अस्तित्व न है
आकार न है,
व्यस्तता का
संस्कार न है।
तू बना था भगवन
लेकिन,
तूने ही पूजा तोड़ दी
परन्तु,
जीव जीवों में लगे
न दिखे फिर वासना,
भंगूर माया मिटे
अमृत्व चरित्र का पालना।
वस्तु वस्तु का दमन
निज शान से नहीं,
तू बनेगा अविलासी
तुच्छ है श्वान से नहीं।
पढ़िए :- हिंदी कविता “कम्पन्न”
यह रचना हमें भेजी है पंकज कुमार जी ने कोरारी गिरधर शाह पूरे महादेवन का पुरवा, अमेठी से।
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