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हिंदी कविता कोरोना पर
तुझे क्या कहूं ?
बीमारी कहूं कि बहार कहूं?
पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं?
संतुलन कहूं कि संहार कहूं?
कहो तुझे क्या कहूं?
मानव जो उदंड था
पाप भी प्रचंड था,
सामर्थ का घमंड था
प्रकृति को करता खंड खंड,
नदियां सारी त्रस्त थी
सड़के सारी व्यस्त थी,
जंगलों में आग थी
हवाओं में राख थी,
कोलाहल का स्वर था
खतरे मे हर जीवो का घर था,
फिर अचानक तू आई ?
मृत्यु का खौफ लाई ?
मानवों को डराया
विज्ञान भी घबरा गया ?
लोग यूं मरने लगे ?
खुद को घरों में भरने लगे,
इच्छा को सीमित करने लगे
प्रकृति से डरने लगे,
अब लोग सारे बंद है
नदियां भी स्वच्छंद है,
हवाओं में सुगंध है
वनों में आनंद है,
जीव सारे मस्त हैं
वातावरण भी स्वस्थ, है
पक्षी स्वरों में गा रहे
तितलियां इतरा रही?
अब तुम ही कहो तुझे क्या कहूं?
बीमारी कहूं कि बहार कहूं?
पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं?
संतुलन कहूं कि संहार कहूं?
कहो तुझे क्या कहूं?
रचनाकार का परिचय :-
नाम :- नितेश कुमार पाठक
पिता :- शिवेश पाठक
माता :- किरण देवी
वेद विभूषण :- आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान वेद विद्यालय
शास्त्री :- सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
स्थाई निवास :- छोटा बरियाड़पुर मोतिहारी बिहार
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