हिंदी कविता हाशिए पर बेटियां | Kavita Hashiye Par Betiyaan

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हिंदी कविता हाशिए पर बेटियां

हिंदी कविता हाशिए पर बेटियां

टूटे कंधे और कटी ज़बान,
वस्त्र, गुप्तांग हैं लहुलुहान
देह पर नाखूनों के निशान
मैं दलित बेबस, बेजुबान।

दबोची गई गरदन,रीढ़ पर वार
आत्मा की अनसुनी चीत्कार
हिंसक रेप, कटाक्षों की बौछार
जातीय चक्की में पिसते औरतजात।

चल रहा यहां पर जंगलराज
खुलमखुल्ला घूमे रंगे सियार
मेमने सी कन्याओं को चबाते
जबड़े पर ताज़ा लहू के दाग़

जीवन के दोहरे अभिशाप
भोग रही हैं जातीय कारागार
छातियों पर दंत के गहरे घाव
रीढ़ पर लोहे की रॉड के प्रहार

मय्यत में भी कोई नहीं अपना
ऑर्डर फॉलोवर,मुजरिम जजमान
कुछ लोभी, चमचे और चाटुकार
मौत के तांडव से घिरा श्मशान

कर देगें नवबालिकाओं के रेप
गुनाह छिपाने की सौ तरकीब
गुंडाराज़ में,बेटियों को तकलीफ़
सत्ता, मीडिया की गोद हैं करीब

हुक्मरान, प्रशासन और मीडिया
कोई नहीं यहां निर्धन का साथी
हाथरस की बेटी कोर्ट के किवाड़
खटखटा,न्याय पाने को पीटे छाती।

पढ़िए :- बेटी पर छोटी कविता | बेटियां कुल का गौरव होती है


रचनाकार का परिचय

डॉक्टर राजकुमारीयह कविता हमें भेजी है डॉक्टर राजकुमारी उर्फ़ खुशीराज जी ने नई दिल्ली से।

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2 Responses

  1. Avatar हरदीप बौद्ध says:

    वाकई वर्तमान भारत में बेटियां हाशिए पर हैं, यहाँ अत्याचारी खुले घूम रहे हैं, उनके हौंसले अतिरंजित बढ़ते जा रहे हैं।

    बेहतरीन सृजन डॉक्टर साहिबा जी

  2. Avatar डॉ. राजकुमारी says:

    हिन्दी प्याला के संचालक महोदय और सम्पूर्ण टीम का हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करती हूं।

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