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हिंदी कविता प्रेम के दुश्मन

हिंदी कविता प्रेम के दुश्मन

होती है शुरुआत
प्रेम के दुश्मनों की
घर और परिवार से,
सहन नहीं कर पाते
अपने बच्चों के प्रेम को।
प्रेम की पूजा करने वाले
मार डालते हैं प्रेम को,
प्रेम में बंधी जोड़ी को…

समाज भी है दोषी,
प्रेम के दुश्मनों को
सहा नहीं जाता।
ये खुला प्रेम बच्चों का
समाज नहीं चाहता
उसकी कैद से आजाद हो
कोई प्रेम का परिंदा…

जाति के भी हैं कई फरमान
ना तोड़े कोई
जाति की दीवार को,
प्रेम से तोड़ी जा सकती
जाति की दीवार…
लेकिन जातियां नहीं चाहती
कि टूटे प्रेम की दीवार…

क्या कहेंगे
अपनी जाति के लोग,
ये भी होते हैं
प्रेम के दुश्मन…

प्रेम के दुश्मनों में खौफ है
टूट गई अगर जातियां
हमें पूछेगा कौन?
और सुनेगा हमारी कौन?
जाति की खातिरदारी के लिए
होते हैं इंसानियत
और प्रेम के दुश्मन…

ना होती है कोई
प्रेम की जाति
ना होता कोई धर्म
फिर भी क्यों बनें हुए
प्रेम के दुश्मन…

संस्कार के नाम पर
प्रेम को कैद किया।
श्रृंगार के नाम पर
प्रेम को गुलामी दी।
प्रेम के परिंदों को उड़ने दो
उन्हें जीने दो आसमां में
शौक नहीं है प्रेमियों को
घर से भागने और भगाने का
डर है तो उन्हें
प्रेम के दुश्मनों का…
वो प्रेमियों को जिंदा नहीं छोड़ेंगे…


रचनाकार का परिचय

 

प्रकाश भारतीय "मस्त"यह कविता हमें भेजी है प्रकाश भारतीय “मस्त” जी ने अरणाय सांचौर (राजस्थान) से।

उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।

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