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हिंदी कविता बेहतरीन नजर नहीं है

हिंदी कविता बेहतरीन नजर नहीं है

बेहतरीन नजर नहीं है, होती तो अपनाता
बेहतरीन होती तो अपनी कमी देख पाता।
मात्र कहने से भारत विश्व गुरु नहीं हो जाता,
तेरे कर्मों से गुलामी की ओर बढ़ता है जाता।।
बेहतरीन नजर नहीं है होती तो अपनाता,
बेहतरीन नजर होती तो अपनी कमी देख पाता।।

आज भाषण भी देना होगा तुमको,
बहनों -भाइयों से संबोधित करोगे सबको।
लेकिन बेच दिया लाल किला ही,
क्या किराए का लाल किला भाएगा तुमको।।
बिका हुआ स्वाभिमान ही नहीं तू देख पाता,
बेहतरीन नजर नहीं है होती तो अपनाता,
बेहतरीन नजर होती तो अपनी कमी देख।।

गणतंत्र दिवस की बधाई
कैसे दें तुम सबको बहनों-भाई।
संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं,
खिलवाड़ किया अधिकारों से

जो दिया था महामानव ने।
क्रांतिकारी गणतंत्र देखो
जो अलख जगाई क्रांति की किसानों ने।।
बहुत सुनी हाकिम के मन की,
बात सुनो आंदोलित जन-जन की।
कैसा हुक्मरान जो किसी का
दर्द समझ नहीं पाता,
समझता तो अपनी कमी देख पाता।
बेहतरीन नजर नहीं है तेरे पास होती तो अपनाता।
बेहतरीन नजर होती तो अपनी कमी देख पाता।।

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रचनाकार का परिचय

प्रीति बौद्ध

यह कविता हमें भेजी है प्रीति बौद्ध जी ने फिरोजाबाद “उत्तर प्रदेश” से।

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